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करने के लिए अन्य पांच आवश्यक बताये हैं । सामायिक रूपी साध्य को सिद्ध करने के लिए अन्य पांच साधन हैं ।
देव के पास से दर्शन,
हैं ।
गुरु के पास से ज्ञान,
धर्म के पास से चारित्र मिलता है ।
ये देव आदि तीनों क्रमशः छःओं आवश्यकों में दिखाई देते
सामायिक के परिणाम चउविसत्थो के द्वारा ही प्रकट होते हैं, प्रभु के आलम्बन से ही प्रकट होते हैं । अतः सामायिक के पश्चात् चउविसत्थो आवश्यक है । अत: दीक्षा देते समय सीधा ही ओघा (रजोहरण) न देकर उससे पूर्व देववन्दन कराते हैं । भक्ति जितनी सुदृढ होगी, सम्यग्दर्शन उतना ही शीघ्र प्राप्त होगा । यदि प्राप्त हो गया होगा तो भक्ति से अधिक निर्मल बनेगा । कल जो सामूहिक जाप किया था वह प्रभु-भक्ति ही है । यह पदस्थ ध्यान है
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पदस्थ ध्यान में प्रभु नाम,
रूपस्थ ध्यान में प्रभु - मूर्ति,
पिण्डस्थ ध्यान में प्रभु की अवस्थाऐं,
रूपातीत ध्यान में प्रभु की सिद्ध अवस्था का ध्यान करना
व तीर्थंकर भी दो प्रकार के हैं
* भावएक तो साक्षात् भगवान स्वयं,
दूसरा भगवान के उपयोग में रही हमारी आत्मा ।
* प्रभु का नाम जपते रहें उस प्रकार प्रभु के सान्निध्य का अनुभव होगा ।
नाम ग्रहंता आवी मिले, मन भीतर भगवान ।
नाम के साथ एकाग्र बनने से प्रभु के सामीप्य का अजैन मीरा, रामकृष्ण अथवा नरसी भगत को अनुभव हुआ है । प्रभुनाम के अतिरिक्त उन्हें कौन सा आधार था ?
प्रभु के हजारों नाम हैं। किसी भी नाम से प्रभु को जपो, प्रभु उपस्थित हो जायेंगे ।
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कहे कलापूर्णसूरि ३