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કરબલ)
प्रकाशकीय...
શ્રી આશાપૂરણ | (गुजराती प्रथमावृत्ति में
से वायन
मसाisR वागड़ समुदाय की उज्ज्वल परम्परा के वाहक ज्योतिविद पूज्य दादाधी, पद्मविजयजी, संयममूर्ति पूज्य दादाश्री जीतविजयजी, वात्मरकामूनि पूज्य आचार्यश्री विजयकनकसूरिजी, परम क्रियारुचि ओसवाल समाजोद्धारक पूज्य आचार्यश्री विजयदेवेन्द्रसूरिजी आदि महात्माओं का हम पर अनेक उपकार हैं।
उक्त उज्ज्वल परम्परा के वाहक पुन्य पुरुष पूज्य आचार्यश्री विजयकलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. को जैन जगत् में कौन नहीं जानता? अखिल भारत वर्ष के जैनों में अभूतपूर्व ख्याति प्राप्त पूज्य आचार्यश्री आज वागड़ समुदाय के नायक के रूप में हैं, जिसके लिए हम अत्यन्त गौरवान्वित हैं । ___ पूज्यश्री के दर्शनार्थ सैंकड़ों की संख्या में लोग निरन्तर आते रहते हैं । वे वन्दन, वासक्षेप, वार्तालाप, व्याख्यान-श्रवण आदि के अभिलाषी होते हैं, परन्तु उन सबकी ये समस्त अभिलाषाएं पूर्ण नहीं हो पातीं।
व्याख्यान श्रवण करने को मिले तो भी दूर बैठने के कारण तथा पूज्यश्री की आवाज मन्द होने के कारण अच्छी तरह सुना नहीं जाता। पूज्यश्री की वाणी का लाभ सभी लोग प्राप्त कर सकें, उस उद्देश्य से प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है।
इससे पूर्व, 'कहे कलापूर्णसूरि-१' नामक ग्रन्थ का हम प्रकाशन कर चुके हैं, जिसमें वांकी तीर्थ में दी गई वाचना का संग्रह था । लोगों की अत्यन्त मांग को देखते हुए और उनकी विशेष आतुरता को देखकर इस ग्रन्थ का भी हम प्रकाशन कर रहे हैं । आशा है, श्रद्धालु लाभ उठायेंगे ।
वांकी तीर्थ में चातुर्मास के बाद पूज्यश्री खचाखच कार्यक्रम में व्यस्त रहे, यद्यपि पूज्यश्री की निश्रा में हमेश ऐसे ही खचाखच कार्यक्रम रहते है ।
वांकी चातुर्मास बाद पालीताना तक के कार्यक्रमों की तनिक झलक: वि.सं. २०५६ : • मार्ग. व. १२-१३ : भुज नगर में अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा और
नीताबहन की दीक्षा । मार्ग. व. ३० : माधापर पू.सा.श्री अनंतकिरणाश्रीजी की वर्धमानतप
की १०० ओली का पारणा । • मार्ग. सु. ३ : वांकी तीर्थ में, श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिष्ठा ।