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पांच प्रकार के चारित्र में आज दो ही चारित्र (सामायिक और छेदोपस्थापना) विद्यमान हैं ।।
दीक्षा ग्रहण करने के समय आजीवन सामायिक की प्रतिज्ञा दी जाती है । बड़ी दीक्षा के समय पांच महाव्रतो का आरोपण किया जाता है।
पांच महाव्रत तन, मन, धन आदि का सुख देते हैं ।।
तन, मन, धन, वचन एवं जीवन - ये पांचो व्यवस्थित हों तो मनुष्य सुखी कहा जाता है ।
अहिंसा से - तन (शरीर) सत्य से - वचन अचौर्य से - धन ब्रह्मचर्य से - मन . अपरिग्रह से - जीवन सुन्दर बनता है ।
तन, मन, धन आदि में से कुछ भी उत्तम मिला हो वह पूर्व में अहिंसा आदि की आराधना का प्रभाव है, यह माने ।
(पूज्य आचार्यश्री आदि पधारने के पश्चात्) पूज्यश्री -
जिसे इन्द्र भी नमस्कार करते हैं, उस चारित्र की प्राप्ति इस मानवभव का उत्कृष्ट सौभाग्य है ।
यह सौभाग्य मिलने के पश्चात् उसका सम्यक् पालन नहीं हुआ तो वह सौभाग्य दुर्भाग्य में बदल जायेगा ।
'ज्ञाताधर्मकथा' में एक दृष्टान्त आता है -
एक सेठ ने भव्य महोत्सव (समारोह) करके चारों पुत्र-वधुओं को डांगर (एक अनाज का नाम) के पांच दाने संभालने के लिए दिये । पांच वर्षों के बाद सेठ ने वे दाने पुनः मांगे तब ज्येष्ठतम पुत्र-वधु उज्झिका ने कहा, वे तो मैंने फेंक दिये ।'
दूसरी पुत्र-वधु भक्षिका ने कहा, 'मैं ने तो वे खा लिये ।'
तीसरी रक्षिका ने संभाल कर रखे दाने निकाल कर कहा, 'ये रहे पांच दाने ।'
चौथी रोहिणी ने कहा, 'मेरे पांच दाने मंगवाने के लिए बैलगाडियां लानी पडेगी, क्योंकि बोते-बोते वे अनेक गुने हो गये हैं। (५२०wwwwwwwwwmommmmmmmm कहे कलापूर्णसूरि - २