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पालिताना, वि.सं. २०५६
९-७-२०००, रविवार आषाढ़ शुक्ला-८ : पालीताणा
* मुक्ति मार्ग में सहायक हों उस प्रकार भगवान हमेशा धर्मदेशना देते रहे और गणधर भगवान उनका संग्रह करते रहे । जिनवचनों के उस संग्रह को हम आगम कहते हैं । यदि ये आगम हमें नहीं मिले होते तो अपना क्या होता ?
श्री हरिभद्रसूरिजी के शब्दों में कहें तो...
'हा ! अणाहा कहं हुंता न हुँतो जइ जिणागमो ।'
सूर्य-चन्द्र की अनुपस्थिति में छोटा सा दीपक घर को ज्योतिर्मय करता है, उस प्रकार आगम अपने आत्म-गृह को ज्योतिर्मय करते
आगम एवं जिन-बिम्ब दो ही इस कलिकाल में आधार रूप हैं। 'कलिकाले जिनबिम्ब जिनागम भवियणकुं आधारा...'
- पं. वीरविजयजी म.सा. तीर्थ की स्थापना के समय ही दोनों का निर्माण हो जाता है । समवसरण में भगवान के चार रूप हुए और (तीन रूपों में) जिनबिम्ब का निर्माण हो गया । भगवान बोले और आगमों का निर्माण हो गया । (कहे कलापूर्णसूरि - २0000000ooooooooooooo ४८५)