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________________ रहे हैं, ये समाचार आप नित्य सुनते रहते हैं न ? देव- गुरु कृपा से कदाचित् गुणों का विकास हुआ हो तो भी गुप्त रखें, दुनिया को न दिखायें । दिखाने के लिए गये तो लुट जाओगे । अहंकार आदि आने में विलम्ब नहीं लगेगा । शास्त्र में एक दृष्टान्त है । यों तो मैं दृष्टान्त खास कदापि नहीं कहता, परन्तु आज कहता हूं । जंगल में एक जैन मुनि योग की साधना कर रहे थे । उनकी योग-साधना के प्रभाव से सिंह आदि जंगली प्राणी भी शान्त वृत्ति वाले बन गये । धर्म प्राप्त किये हुए सन्तों का यह लक्षण है । उनके समीप आनेवाला उपशान्त बनता ही है । आप यह नही मानें कि भगवान मात्र बोल कर ही उपकार करते है उनके अस्तित्व मात्र से भी उपकार होता रहता है, यह समझना पड़ेगा । अभिमानी इन्द्रभूति मात्र भगवान का दर्शन करता है और एकदम शीतल हो जाता है, अभिमान का पर्वत चूर-चूर हो जाता है । यह प्रभु की समीपता मात्र का प्रभाव था । भगवान के पास ३६३ पाखंडी बैठते थे, परन्तु चूं भी नहीं कर सकते थे । यह प्रभु का प्रभाव था । पशु-पक्षी, मानव आदि भगवान के सामीप्य मात्र से धर्म पा जाते हैं । प्रभु के प्रभाव से उनका हृदय आनन्द से भर जाता है, मस्तक झुक जाता है तो समझो काम हो गया । बीजाधान हो गया । भगवान को देखकर प्रसन्न होना ही योग का बीज है । इसी प्रकार से जंगल में निवास करनेवाले योगी भी विश्व पर उपकार करते हैं । उनके अस्तित्व मात्र से उपकार होता रहता है । योगी से शान्त बना एक सिंह योगी का प्रभाव फैलाने के लिए समीप की एक पल्ली में गया । वहां के सरदार के तीर छोड़ने पर सिंह ने निशान चूका दिया और वह सिंह मानव भाषा में बोला, 'यदि ये योगी मुनि मुझे नहीं मिले होते तो मैं तुझे मार डालता।" www कहे कलापूर्णसूरि ४८२ WWW.
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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