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________________ अनजाने अपराध हो जाये तो अल्प प्रायश्चित आता है । यदि इरादा पूर्वक अपराध किया जाये तो प्रायश्चित अत्यन्त ही अधिक आता है । वह भी यदि हृदय से पश्चाताप होता हो तो ही । शास्त्र कहते हैं 'पच्छित्तं अवस्स कायव्वं ।' ऐसा धर्म विश्व में आपको कहीं नहीं मिलेगा, जो आपको सबके सुकृतों की अनुमोदना करना सिखाये और साथ ही साथ अपने छोटे पाप की भी गर्हा करना सिखाये । ऐसा शासन मिलने के पश्चात् क्या पाप छिपाये जायें ? 'सुण जिनवर शेत्रुंजा धणीजी...' स्तवन, 'रत्नाकर पच्चीसी' की 'मंदिर छो मुक्ति तणा' स्तुतियों आदि याद हैं न ? इन रचनाओं में कैसी दुष्कृत गर्हा की है ? भावपूर्वक यदि दुष्कृतगर्दा की जाये तो इस जन्म के ही नहीं, जन्म-जन्म के पाप धुल जायें । झांझरिया मुनि के हत्यारे यमुन राजा ने ऐसी दुष्कृत गर्हा की कि मात्र ऋषि - हत्या का पाप ही नहीं, उनके जन्म-जन्म के पाप धुल गये । उन्हें केवलज्ञान हो गया । किसी एक दाग को साफ करने के लिए जब आप वस्त्र धोते हैं तब मात्र वह दाग ही नहीं, अन्य दाग भी साफ हो जाते हैं । * अपने ही दोष देखने की कला जिसने सिद्ध कर ली, उसने जगत् की सबसे बड़ी कला सिद्ध कर ली । कितनेक मनुष्य, कितनेक क्यों, अधिकतर मनुष्य दूसरों के ही दोष देखते हैं, चाहे स्वयं में हजारों दोष हों; परन्तु कोई विरले ही होते हैं जो प्रत्येक घटना में स्वयं की जवाबदारी देखते हैं, अपने ही दोष देखते हैं । चंडरुद्राचार्य इतने क्रोधी होने पर भी उनके नूतन शिष्य को इसी गुण के कारण केवलज्ञान प्राप्त हुआ था । यदि उसने गुरु के दोष ही देखे होते तो ? क्या हो ? गुरु इतने क्रोधी हैं कि कोई साधना ही नहीं हो सकती । हम होते तो ऐसा ही करते। जन्म-जन्म में ऐसा ही किया है । इसीलिए तो आज तक केवलज्ञान मिला नहीं है । * क्षमा, सन्तोष आदि जितने गुण हैं, वे सभी गुण देने Wwwwwww कहे कलापूर्णसूरि ४२४ -
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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