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नहीं जा सकता ।
* भगवान शरीर के रूप में भले ही अनुपस्थित हैं, परन्तु आत्मा के रूप में तो सिद्धशिला में हैं ही । वहां से भी वे उपकार की हेली बरसा ही रहे हैं । सूर्य चाहे दूर हो, लेकिन प्रकाश के रूप में यहीं है न ? भगवान चाहे दूर हो, परन्तु प्रभाव के रूप में यहीं है ।
आपके अन्तर में भाव हो तो भगवान दूर नहीं है । भाव को क्षेत्र की दूरी रुकावट नहीं बनती ।
आप यह न पूछे कि भगवान कहां है ? आप यह पूछे कि आप कहां है ?
जमालि नजदीक था, सुलसा दूर थी; फिर भी जमालि के लिए भगवान दूर थे और सुलसा के लिए भगवान समीप थे ।
हम भगवान की शक्ति पहचान नहीं सकते, क्योंकि हमारी भूमिका निर्मल नहीं बनी । यदि भूमिका निर्मल बनें तो 'भक्तामर' जैसे स्तोत्रों में से भी भगवान का प्रभाव कदम-कदम पर देखने को मिलेगा ।
टेलीफोन जैसे जड़ पदार्थ के द्वारा भी यदि दूरस्थ मनुष्यों के साथ सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता हो तो भक्ति के द्वारा क्यों नहीं स्थापित किया जा सकता ?
दीपक अपना प्रकाश दूसरों को दे सकता है । एक दीपक में से हजारों दीपक प्रज्वलित होते हैं तो भगवान दूसरों को भगवान क्यों न बना सकें ? परन्तु एक शर्त है कि कोडिया, तेल और बाती तैयार चाहिये । कोड़िये को प्रज्वलित दीपक के पास जाना चाहिये और झुकना चाहिये । झुकेगा नहीं तो कार्य नहीं होगा । मेरे पास कोडिया है, तेल है, बाती है। अब मुझे किसी के पास जाने की क्या आवश्यकता है ? मैं झुकू क्यों ? यह मानकर यदि कोड़िया दीपक के पास न जाये, न झुके तो ज्योति कदापि जल नहीं पायेगी ।
* पांच ज्ञानों में श्रेष्ठ ज्ञान कौन सा है ? केवलज्ञान के बिना मोक्ष नहीं होता, अतः यह महान् है; परन्तु केवलज्ञान प्राप्त कैसे हो ? उसके लिए श्रुतज्ञान चाहिये । श्रुतज्ञान की एक विशेषता (१६२ Wow on a was soon
as कहे कलापूर्णसूरि - २)