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मैथुन संज्ञा में आसक्त 'ब्रह्मदत्त' सातवी नरक में गये हैं ।
संज्ञा अर्थात् प्रगाढ आसक्ति ! अगाध संस्कार ! भगवान की कृपा से ही इनसे मुक्त हो सकते हैं । सिद्धचक्र की आराधना संज्ञा की पकड में से मुक्त होने के लिए हैं ।
सिद्धचक्र में साध्य, साधक और साधना सभी हैं । अरिहंत, सिद्ध साध्य हैं । आचार्य, उपाध्याय, साधु साधक हैं । दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप साधना हैं ।
हमारा पारम्परिक साध्य अरिहंत, सिद्ध भले ही हों, परन्तु वर्तमान में साधुत्व अनन्तर साध्य है । सच्चा साधुत्व आ जाये तो सच्चे साधक बन सकते हैं। सच्चा साधक बनने वाला साध्य प्राप्त करेगा ही ।
समता, सहायता और सहनशीलता के द्वारा सच्चा साधुत्व आ सकता है ।
आपमें ये तीनों हैं न ? मुझे तो लगता है कि हैं । आपमें कैसी समता है ? आप कैसे शान्त बैठे हैं ? आप परस्पर कितनी सहायता करते हैं ? कोई भी नया व्यक्ति वाचना लेने के लिए आये तो आप उसे तुरन्त स्थान दे देते हैं । अन्य समुदाय वाले को तुरन्त ही आप आगे बिठाते हैं । सहन कर के भी आप दूसरे को आगे करते हैं । यह सब असत्य तो नहीं है न ?
संसार के सभी जीवों को समझाना सरल है । केवल अपनी आत्मा को समझाना कठिन है । दीपक दूसरों को प्रकाश देता है, परन्तु उसके नीचे ही अंधेरा रहता है। दूर पर्वत जलता हुआ दिखाई देता है, परन्तु अपने पांव के नीचे आग नहीं दिखाई देती ।
हजारों को तारने की शक्ति होते हुए भी स्व-आत्मा को यदि नहीं तार सकें तो क्या काम के ? सबका पेट भर जाये, परन्तु अपना ही पेट न भरे तो ? ।
* संसार के दावानल का शमन करने में समर्थ एक मात्र जैन प्रवचन है । साधु दावानल का शमन कर सकता है क्योंकि उसे जैन प्रवचन प्राप्त है ।।
कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरिजी कहते हैं - 'उन्हें हम अंजलिबद्ध प्रणाम करते हैं, उनकी हम उपासना करते हैं, जिन्होंने (१५६ 60owwwwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - २)