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थोड़ा ही मूल्य है ? वृक्ष एवं पत्थर भी मौन है । ऐसा मौन तो एकेन्द्रिय की योनि में बहुत पाला है।
पू. उपाध्यायजी महाराज कहते हैं - हमारे योगों की पुद्गल में प्रवृत्ति नहीं होने देनी यह उत्कृष्ट मौन है ।
सर्वाधिक श्रेष्ठ तीन वस्तु तीन मंत्र - कम खाना, गम खाना, नम जाना । सदा करो - मौन, अल्प परिग्रह, आत्म-निरीक्षण । शीघ्र करो - प्रभु-पूजा, शास्त्राध्ययन, दान । दया करो - दीन, विकलांग (अपंग), धर्म-भ्रष्ट के प्रति । वश में करो - इन्द्रिय, जीभ और मन । त्याग करो - अहंकार, निर्दयता, कृतघ्नता । परिहरो - कुदेव कुगुरु, कुधर्म । निडर बनें - सत्य में, न्याय में, परोपकार में । धिक्कारो मत - रोगी को, निर्धन को, दुःखी को । भूलो मत - मृत्यु, उपकारी, गुरुजनों को ।
सदा उद्यमशील रहो - सद्ग्रन्थ - सत्कार्य एवं सन्मित्र की प्राप्ति में ।
घृणा न करें - रोगी, दुःखी एवं नीच जाति वाले से । घृणा करें - पाप, अभिमान एवं मन की मलिनता से । ,
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