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________________ से प्रशंसा और काया से सेवा करके पूजा करेंगे । इसका नाम ही पूजा है । गुणी की पूजा कब होगी ? गुणों का आदर होगा तब । ४. धार्यों रागो गुणालवेऽपि । थोड़ा भी गुण जहां कहीं दृष्टिगोचर हो तो, उसके प्रति आदरभाव होना चाहिये । अन्य के गुणों के प्रति राग रखने से हमें क्या लाभ ? उसके पुण्य की, धर्म की अनुमोदना होगी । पुण्य के बिना गुण नहीं आते । पुण्य-धर्म की अनुमोदना से हमारे भीतर भी वे गुण आ जायेंगे । अब इससे विपरीत करें । थोड़ा भी अपना दोष हो, उसके प्रति धिक्कार-भावना उत्पन्न करके उसे निकाल दो । परन्तु हम विपरीत कार्य करते हैं । अन्य के पर्वत तुल्य गुण भी हम देख नहीं सकते और अपने कण जितने गुण भी मण जितने मानते हैं । ५. 'ग्राह्यं बालादपि हितम् ।' हितकारी बात बालक के पास भी स्वीकार कर लेनी चाहिये । पू. पं. भद्रंकर विजयजी के पास यह अनेक बार देखने को मिला । छोटा बालक भी नवकार गिनता तो उसे देखकर प्रसन्न होते । ६. 'आलापैः दुर्जनस्य न द्वेष्यम्' दुर्जन के बकवास से क्रोधित नहीं होना । अनेक बार शास्त्रकार सज्जनों से पूर्व दुर्जनों की स्तुति करते हैं, क्योंकि दुर्जन नहीं होंगे तो मेरा शास्त्र शुद्ध कौन करेगा? दुर्जन यदि नहीं होते तो सज्जनों की कदर कैसे होती ? सज्जनों को विपरीत प्रकार से प्रसिद्ध करनेवाले दुर्जन ही हैं । क्या आप जानते हैं कि राम को ख्याति दिलानेवाला रावण था ? यदि रावण का पृष्ठभाग काला नहीं होता तो राम की शुभ्रता हमें शायद प्रतीत न होती । ३६ ****************************** कहे क
SR No.032617
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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