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________________ गुरु-स्तुति जे कच्छवागड देशकेरा, परम उपकारी खरा, ज्यां ज्यां पड्या गुरुना चरण, त्यां त्यां बनी पावन धरा; अरिहंत प्रभु शासन प्रभावक, कार्यथी परहित करा, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना जे मोक्षना अभिलाषथी सुविशुद्ध संयम धारता, भव-भ्रमणना निर्वेदथी विषयो कषायो वारता; जे रहे प्रवचन मात शरणे आतमा संभाळता, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना जे ब्रह्मचर्य वडे निज परम पावन आतमा, शत्रु प्रमाद पछाडता बनवा सदा परमातमा; हितकार थोडं बोलता वैराग्य भरता वातमां, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना जे गुरुकृपाथी आगमोना अर्कने तुरत ज ग्रहे, अमृत थकी पण अधिक मीठी वाणी जिनवरनी कहे; आसक्ति पुद्गलनी तजीने निज स्वभावे जे रहे, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना जेना हृदयमां संघ पर वात्सल्य, झरणुं वहे, शासन तणी सेवा तणो अभिलाष अंतरमा रहे; जस नाम मंत्र प्रभावथी सहु भाविको पापो दहे, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना ******** कहे कलापूर्णसूरि - 8 ५९० ****************************** कहे
SR No.032617
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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