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✿ 'बहुवेल संदिसाहुं' के आदेश किस लिए ?
'बहुवेल संदिसाहुं' के आदेश में गुरु- समर्पण छिपा हुआ है । कोई भी कार्य गुरु को पूछे बिना नहीं ही किया जा सकता, परन्तु सांस आदि की प्रवृत्ति हेतु बारबार कहां पूछें ? ऐसी प्रवृत्ति की आज्ञा 'बहुवेल संदिसाहुं' के आदेश से मिल जाती है ।
यद्यपि इसमें सांस लेने जैसी बातों की ही हम आज्ञा नहीं लेते, दूसरे बड़े कार्यों की भी आज्ञा ले लेते हैं । पूछने योग्य बड़े कार्यों में जितना न पूछें उतना गुरु- समर्पण कम समझें ।
अध्यात्म गीता
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'द्रव्य अनन्त प्रकाशक, भासक तत्त्व स्वरूप,
आतम तत्त्व विबोधक शोधक सच्चिद्रूप; नयनिक्षेप प्रमाणे जाणे वस्तु समस्त, त्रिकरण योगे प्रणमुं, जैनागम सुप्रशस्त ॥ २ ॥' वेदों आदि शास्त्रों को उनके अनुयायी भगवान मानते हैं । सिख गुरु ग्रन्थ को भगवान मानते हैं । हमें भी आगम में भगवद्बुद्धि करनी है ।
मूर्ति आकार से मौन भगवान है, जबकि आगम बोलते भगवान हैं ।
✿ दुनिया के पदार्थ भी इसलिए जानने हैं कि ये पुद्गल पदार्थ मैं नही हूं, आत्मा नहीं है यह समझ में आ जाये ।
✿ आत्मा के अलावा किसी वस्तु में जानने की शक्ति नहीं है, जबकि आत्मा में स्व-पर ज्ञायक शक्ति है ।
✿ आत्मा के सभी प्रदेश-पर्याय साथ मिलकर ही कार्य करते हैं, अलग-अलग नहीं । दो आंखों से एक ही वस्तु दिखाई देती है । यदि इस उपयोग को सम्पूर्णत: भगवान में जोड़ दें तो ? ✿ अनादिकाल से हमारी चेतना पुद्गलों की ओर ही आकर्षित है, बिखरी हुई है, अब उसे आत्मस्थ करनी है, बाहर से हटाकर भीतर खींचनी है ।
✿ सिंह को बकरों के समूह में देखकर अन्य सिंहों को कितना दुःख होगा ? हमारा जातिभाई इस तरह 'बैं- बैं' करे ? भगवान की दृष्टि में हम सब सिंह जैसे होते हुए भी 'बैंकहे कलापूर्णसूरि- १ ***
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