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पूज्यश्री के गुरुदेव पू. कंचनविजयजी म.
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२६-१०-१९९९, मंगलवार
का. व. २
छ: छ: माह में नवपद की आराधना आती है, ताकि प्रत्येकबार उसकी आराधना में नया नया स्फुरण होता रहे । नया नया उल्लास बढता ही रहे ।
प्रति छ: महिने नवपद की एक ही बात से कंटाला न आ जाये ? यदि यह प्रश्न पूछते हो तो मैं कहूंगा कि क्या आप नित्य एक ही एक रोटी से उबते हैं क्या ? यदि वहां कंटाला नहीं आता तो यहां कंटाला कैसे ?
नवपद में आत्मा को देखना या आत्मा में नवपद को देखना, इसका अर्थ यह है कि नवपद की प्रत्येक अवस्था का आत्मा में अनुभव करना । भले हम स्वयं अरिहंत नहीं बने, परन्तु हमारे ध्येय में तो अरिहंत आ सकते है न ? साध्य में तो अरिहंत आ सकते है न ? इसका ही नाम नवपद की प्रत्येक अवस्था का आत्मा में अनुभव करना ।
अपना उपयोग नवपदों में से किसी भी पद में रहता है तब अपनी आत्म-शक्ति बढती है। विषय-कषायों में उपयोग रहता है तब आत्मशक्ति का हास होता है, यह समझ लीजिये ।
कहे क
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