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करे तो अत्यन्त हलका हो जाता है जैसे भार उतारने के बाद मजदूर हलका हो जाता है ।
जब तक हम आलोचना नहीं लेते, तब तक भारी हैं । आलोचना के समय सिर्फ वह पाप ही दूर नहीं होता, जन्मजन्मान्तरों के पाप भी दूर हो जाते हैं । झांझरिया मुनि के हत्यारे राजा को जब पश्चात्ताप हुआ तब मुनि हत्या का पाप ही नहीं, जन्म-जन्मान्तरों के पाप भी नष्ट हो गये । राजा केवली बन गया । जब आप वस्त्र के दाग साफ करने के लिए धोते हैं तब सिर्फ दाग ही साफ नहीं होता, पूरा वस्त्र स्वच्छ होता हैं ।
✿ जल की तरह आप घी नहीं ढोलते (बहाते), आवश्यकता से अधिक रूपये व्यय नहीं करते तो फिर वाणी का अपव्यय क्यों करते हैं ? मन का अपव्यय क्यों करते हैं ?
असंक्लिष्ट मन तो रत्न है, आन्तरिक धन है । उसे क्यों नष्ट किया जाये ? चित्तरत्नमसंक्लिष्टम् आन्तरं धनमुच्यते ।
हमारी वाणी कितनी मूल्यवान है ? मौन रहकर यदि वाणी की ऊर्जा का संचय करेंगे तो यह वाणी अवसर आने पर काम आयेगी, अन्यथा वैसे ही नष्ट हो जायेगी ।
मन से यदि दुर्ध्यान करेंगे, उल्टे-सीधे विचार करते रहेंगे तो शुभ ध्यान के लिए ऊर्जा कहां से बचेगी ?
वाणी प्रभु का गुणगान करने के लिए मिली है । पवित्रां स्वां सरस्वतीम् ।
तत्र स्तोत्रेण कुर्यां च, इस वाणी से कठोर शब्द कैसे निकलें ? किसी की निन्दा किस प्रकार हो सकती है ?
यह मन प्रभु का ध्यान करने के लिए है, तो दूसरों का ध्यान कैसे किया जाये ?
राजा को बैठने के योग्य सिंहासन पर भंगी ( हरिजन ) को कैसे बिठाया जाये ?
यदि हम इन मन, वचन, काया के योगों का दुरुपयोग करेंगे तो हमें ऐसी गति में जाना पड़ेगा जहां मन एवं वचन नहीं होंगे । देह मिलेगा अवश्य परन्तु अनन्त जीवों के लिए एक ही मिलेगा । एक सांसमें १७ बार मृत्यु और १८ बार जन्म होता है, पूरे मुहूर्त में ६५५३६ बार जन्म-मरण होता है उस निगोद में जाना पड़ेगा । ************ कहे कलापूर्णसूरि - १
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