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ऐसा विचार था कि गुजरात में जायेगें तब योग्य जिज्ञासु मिलेंगें तो 'ध्यान-विचार' ग्रन्थ वाचना में पढना है।
बाबुभाई कडीवाला - तो पालीताणा में हम चार माह रहेंगे । . 'अज्ञात वस्तुतः ज्ञाते सति श्रद्धा अनन्तगुणा भवति । अज्ञात की अपेक्षा जानी हुई वस्तु में श्रद्धा अनन्तगुनी होती
है ।
. हम भी नवकार गिनते हैं, पंन्यासजी म. भी गिनते थे । फरक क्या ? उनकी कक्षा अत्यन्त उच्च थी । अतः उन्हें भिन्न फल मिलता; हमें भिन्न फल मिलता है।
नवकार 'श्रीमती'ने भी गिना था और वर्तमान 'श्रीमतियां' भी गिनती है, परन्तु फरक कहां आया ? पत्थर एक ही है। आप हाथ से फेंकते हैं और दूसरा गोफण से फेंकता है तो फरक तो पड़ेगा ही । यदि उसी पत्थर को बन्दूक से फैंका जाय तो ?
एक छोटा व्यापारी चौबीस घंटे काम करके मुश्किल से एक हजार रूपये कमाता है । बड़ा व्यापारी कोई विशेष काम एवं श्रम नहीं करने पर भी लाखों रूपये कमाता है । क्योंकि उसके पास धन ज्यादा है। उसके पास धन अल्प है। धन के अनुसार मुनाफा कमाया जा सकता है।
पंन्यासजी महाराज के पास ज्ञान का धन ज्यादा था । इसी कारण से वे अधिक कमा सके ।
. चिन्ताभावनापूर्वकः स्थिराध्यवसायो ध्यानम् । 'ध्यानविचार' का यह प्रथम सूत्र है । चिन्ता एवं भावना-ज्ञानपूर्वक का अध्यवसाय ध्यान है । चिन्ता सात प्रकार की होती हैं।
. ध्यान के चौबीस भेदों में नवकार का जाप पद ध्यान है। यह ध्यान श्रेष्ठ है, क्योंकि नवकार के पांच पद श्रेष्ठतम है। राजा, अमात्य, श्रेष्ठी, सेनापति आदि महत्त्वपूर्ण पद हैं । इसी तरह से पंच परमेष्ठी के ये पांच पद महत्त्वपूर्ण है।
मानतुंगसूरि ने कहा है - 'आपकी स्तुति में क्या शक्ति है ? आपकी स्तुति करने वाला आपके समान बन जाता है । स्वयं ही उत्तर देते हुए कहते है कि अपने आश्रित को अपने समान न बनाये वह सेठ किस काम का ?
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