________________
वब्वाण (गुजरात) में पूज्यश्री का प्रवेश, वि.सं. २०४७
४-१०-१९९९, सोमवार
आ. व. १० (प्रातः)
* वांकी का यह मंगल प्रसंग चेतना का उर्वीकरण करने के लिए है। यदि चेतना के उर्वीकरण के प्रति रुचि भी उत्पन्न हो जाये तो हमारा कार्य हो गया समझो ।
. पं. भद्रंकरविजयजी म.के हृदय में अपार करुणा थी । वे आगन्तुक जीव का कल्याण करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहते । वे छोटे बच्चे को भी प्रेम से नवकार प्रदान करते । एक व्यक्ति को नवकार गिनना पन्द्रह मिनिट तक सिखाया, यह हमने देखा है। उनकी दृढ श्रद्धा थी कि नवकार स्वतः ही उसमें निर्मलता उत्पन्न करेगा, योग्यता उत्पन करेगा ।
नवकार सर्व प्रथम अहंकार पर कुठाराघात करता है । मोह का भवन 'अहं' एवं 'मम' पर खड़ा है। नवकार नींव में ही सुरंग फोड़ता है । मम भी 'अहं' के कारण ही है। 'अहं' अर्थात् मैं । 'मम' अर्थात मेरा ।
'मैं' ही नहीं हूं तो मेरा कहां से होगा ? नवकार सिखाता है - 'न अहं', 'न मम' आप यह प्रतिमंत्र जपते रहें, मोहराजा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकेगा ।
******* कहे कलापूर्णसूरि - १)
३४०
*****************************