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वि.सं. २०२८
माघश.
३-१०-१९९९, रविवार
आ. व. ९ (प्रातः)
. माता-पिता की ओर से हमें सहजरूप से ही कतिपय संस्कार ऐसे मिले हैं जो कभी मिट नहीं सकते । जैन कुल में उत्पन्न व्यक्ति स्वाभाविक रूप से ही शिकार, मांस, मदिरा आदि से दूर रहते हैं, यह सहज लाभ है । आप कल्पना करके देखिये कि यदि हम किसी मांसाहारी परिवार में उत्पन्न हुए होते तो ?
सर्व प्रथम माता-पिताने हमें स्कूल में भेजे जहां हमें प्रथम माता मिली - वर्णमाता । 'अ' से 'ह' तक के अक्षर वर्णमाता
इस वर्णमाता को गणधर भी नमस्कार करते है । भगवती सूत्र के प्रारम्भ में इस वर्णमाता को 'नमो बंभीए लिविए' कहकर गणधरों के द्वारा नमस्कार किया गया है।
ब्राह्मी लिपि के आद्य प्रणेता भगवान श्री ऋषभदेव हैं । लिपि भले भगवान ने प्रकट की, परन्तु अक्षर तो शाश्वत ही हैं । ___ 'न क्षरति इति अक्षरम्' इस प्रकार अक्षरों की व्याख्या की गई है अर्थात् अक्षर अनादिकाल से हैं और अनन्तकाल तक रहनेवाले
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