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वाणी के चार प्रकार : वैखरी : हम जिसका उच्चारण करते हैं वह ।
वैखरी वाणी वैसे स्थूल कहलाती है, परन्तु अन्य अपेक्षा से समस्त वाणियों का मूल है । इससे साधना शुरू हो सकती है। प्रभु के स्तोत्र, नवकार आदि उच्चारणपूर्वक बोलें - यह वैखरी वाणी है । इसकी सहायता से आप धीरे धीरे आगे बढ सकते
यदि आप स्तोत्रपूर्वक जाप करेंगे तो मन पूर्णतः एकाग्र बन जायेगा । पूजा करने के बाद स्तोत्र में, स्तोत्र करने के बाद जाप में, जाप के बाद ध्यान में और ध्यान के बाद लय में आप सरलता से जा सकेंगे ।
पूजाकोटिसमं स्तोत्रं, स्तोत्रकोटिसमो जपः । जपकोटिसमं ध्यानं, ध्यानकोटिसमो लयः ॥ यह श्लोक यही बात बताता है, जिस के रचयिता बप्पभट्टसूरिजी हैं ।
• एक श्राविका भी प्रभु-भक्ति से समापत्ति की कक्षा की भक्ति से कैसा अपूर्व आत्म-विश्वास रखती है । यह जानने जैसा है । सम्पूर्ण उज्जैन नगरी शत्रु-सेना की कल्पना से भयभीत थी । मयणा उस समय भी निर्भय थी । सास द्वारा पूछे गये प्रश्न के उत्तर में उसने कहा, 'आज प्रभु-भक्ति के समय हुए अपूर्व आनन्द से मैं विश्वासपूर्वक कह सकती हूं कि आज ही आपका पुत्र (श्रीपाल) मिलेगा और सचमुच वही हुआ ।
. जिस वाणी से आपने प्रभु-गुण गाये, स्तोत्र बोले, नवकार बोले, उस वाणी से क्या अब कड़वा (कटु) बोलेंगे ? गालियां देंगे ? देखना, कहीं, मां शारदा रुठ न जाये । आप शारदा का चाहे जितना जाप करो, परन्तु यदि वाणी की कटुता नहीं छोड़ेंगे तो शारदा कभी नहीं रीझेगी, कभी प्रसन्न नहीं होगी। जहां अपमान होता हो वहां कौन आयेगा ?
. हम सब कुछ भविष्य पर छोड़ते हैं, परन्तु अनुभवियों का कथन है कि इस भव में, यहीं, अभी ही आपको जो चाहिये वह प्राप्त करो । मोक्ष भी यहीं प्राप्त करो । जो यहां मोक्षसुख प्राप्त नहीं कर सका वह परलोक का मोक्ष कभी प्राप्त (३२४ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १)