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'भगवान नाम आदि चार से सर्वत्र, सदा (सब काल में) समस्त जनों पर उपकार कर रहे हैं', ऐसा हेमचन्द्रसूरिजी कहते है । कोई काल ऐसा नहीं है, कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां प्रभुनाम, प्रभु-मूर्ति न हो ।
__ अमुक काल में ही होता तो 'क्षेत्रे काले च सर्वस्मिन्' ऐसा नहीं लिखते, परन्तु आप देखें, चारों गतियों में जीव सम्यक्त्व प्राप्त करते हैं ।
सम्यक्त्व किस प्रकार प्राप्त करते होंगे ? क्या वहां प्रभु का उपकार नहीं है ?
: आज ही भगवती में पाठ आया था, 'गर्भस्थ जीव नरकमें भी जा सकता है, स्वर्ग में भी जा सकता है । शुभ एवं अशुभ दोनों में तच्चित्ते, तल्लेसे, तम्मणे, तदज्झवसाए तदप्पियकरणे' बन सकता है ।
गर्भस्थ जीव वैक्रिय शक्ति से सैनिक बना कर युद्ध कर सकते हैं । आयुष्य समाप्त होने पर नरक में भी जाते हैं । इस प्रकार धर्म के अध्यवसाय से स्वर्ग में भी जाते हैं ।
. स्वयंभूरमण समुद्र में मछलियों को मूर्ति के आकार की मछलियां देखने के लिए मिलने पर जातिस्मरण ज्ञान होता है और वे सद्गतिमें जाती हैं । यहां आकृति के रूप में भगवान आये ।
. मैं आपको एक बात पूर्छ ? गोचरी करते समय कैसे विचार आते हैं ? उत्तम विचार नहीं करो तो बुरे विचार आयेंगे ही । छोटे बच्चे को मां चाहे जहां भटकने नहीं देती, उस प्रकार मन को चाहे जहां भटकने मत दो । मन छोटा बालक है। दुकान को आप मालिक-विहीन छोड़ते नहीं हैं तो फिर मन को क्यों छोड़ते हैं ? आप गोचरी इस प्रकार वापरें कि मन स्वाद से परे बन जायें ।
एक बहन कहने के लिए आई, 'महाराज ! भूल हो गई । चाय में शक्कर के स्थान पर नमक डाल दिया गया है ।' सागरजी महाराज ने वापर लिया । सागरजी महाराज बोले, 'इसमें क्या हो गया ?'
आगम से मति भावित बनाई थी ।
जामनगर में एक बार दूध में शक्कर के स्थान पर नमक आ कहे कलापूर्णसूरि - १
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