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समझ के बिना किया गया धर्म भी मेघकुमार बना सकता है तो समझपूर्वक किया हुआ धर्म क्या नहीं कर सकता ?
हाथी क्रोधी, अभिमानी, और खाने के सम्बन्ध में असिष्णु होते है, फिर भी ढाई दिनों से भूख-प्यास सह कर उसने अपना पांव ऊपर उठाये रखा, क्योंकि निःस्वार्थ भाव से वह केवल एक खरगोश को बचाना चाहता था । यह कोई साधारण बात नहीं थी। ___अतः प्रसन्न हुई कर्मसत्ता ने खरगोश को बचाने वाले हाथी को मेघकुमार बनाया । उसे भावी तीर्थंकर श्रेणिक के समान पिता मिले । और भाव-तीर्थंकर महावीर देव के समान गुरु मिले ।
भगवान का शरण स्वीकार कर लो, फिर आपको कुछ नहीं करना है । आप भक्ति करते-करते ही भगवान बन जायेंगे ।
ड्राइवर अपने साथ ही अपनी गाड़ी में बैठने वालों को भी गन्तव्य स्थान पर पहुंचा देता है । ड्राइवर स्वयं पहले पहुंच जाये और अन्य व्यक्ति बाद में पहुंचे, ऐसा कभी नहीं होता ।
भगवान भी ऐसे ही हैं । भगवान स्व-पर धर्म का प्रवर्तन, पालन, वशीकरण करते हैं । वे ही धर्म-सारथि बन सकते हैं । जिस प्रकार सारथि को घोड़ों का तथा गाडी का प्रवर्तन, पालन एवं वशीकरण करना होता है ।
किसी भी व्यक्ति या गुरु की ओर से धर्म प्राप्त हो, परन्तु उसका मूल स्थान तो भगवान में ही मिलेगा । भगवान ने धर्म का ऐसा वशीकरण किया है कि वह भगवान को छोड़ कर कहीं जायेगा नहीं । जिस प्रकार सारथि के पास अश्वों का वशीकरण होता है ।
भगवान के मोक्ष में जाने के बाद भी उनके गुण और शक्ति इस विश्व में होते ही हैं ।
भगवान के गुणों का, नाम का, मूर्ति का स्मरण, श्रवण, दर्शन यहां बैठे-बैठे भी हम कर सकते हैं ।
जैन दर्शन मूल से किसी वस्तु का अभाव नहीं मानता । हमारे लिए पूर्णत: कोई अनुपस्थित नहीं है । उसके साथ के संयोग का ही अभाव होता है ।
हम छद्मस्थ हैं, शायद हम भगवान को नहीं देख सकते, परन्तु वे तो हम सबको देखते ही हैं न ? कहे कलापूर्णसूरि - १ ***
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