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भी अभिग्रह आदि धारण करते हों तो क्या साधु धारण नहीं करेंगे ?
. कच्छ जितनी कमाई भी यदि मुंबई में न हो तो आप क्या करेंगे ? हम भी संसार छोड़ कर यहां आये । यहां आने के बाद भी कमाई में वृद्धि नहीं की तो क्या विचारणीय नहीं है ?
मुझे याद नहीं हैं कि मैंने कभी प्रमाद किया हो या समय बिगाड़ा हो ।
मुक्ति के पथिक के लिए प्रमाद में रहना नहीं चल सकता ।
- साधु जब गोचरी (भिक्षा) लेने निकलते है तब द्रव्य आदि अभिग्रह धारण करके निकलते है । अभिग्रह धारण करने में भी प्रसन्नता होती है ।
उनकी प्रसन्नता की संसारी को ईर्ष्या होगी । आपकी प्रसन्नता कोई नहीं देखेगा तो आपके पास कौन आयेगा ?
प्रसन्नता चुम्बकीय तत्त्व है जो अन्य व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करती है । वर्तमान समय में भी साधु चक्रवर्ती से भी अधिक प्रसन्नता का स्वामी बन सकते है ।
. साधु-साध्वी तीर्थ के सेवक हैं । इतना ही नहीं, वे स्वयं भी तीर्थरूप है, अर्थात् आप उस स्थान पर हैं जहां आपको भगवान भी प्रणाम करे । तीर्थ को तीर्थंकर प्रणाम करते हैं - ‘णमो तित्थस्स ।'
इस तीर्थ के प्रभाव से ही प्रलयकाल के मेघ रुक रहे हैं । ऐसे तीर्थ की प्राप्ति की कितनी खुमारी होती है ?
आम्रभट्ट अत्यन्त उदार था । वह कहीं विजयी होकर आया था । राजा कुमारपाल ने उसे स्वर्ण मुद्राओं से थैले भर कर दिये, हीरों का हार भी दिया । बाहर निकलने पर याचकों द्वारा घेर लिया जाने पर सब कुछ दान में दे दिया, हीरों का हार भी याचकों को दे दिया ।
पाटन में सर्वत्र प्रशंसा होने लगी ।
ईर्ष्यालु व्यक्तियों ने कुमारपाल के कान भरे कि आप से भी अधिक आम्रभट्ट की प्रशंसा हो रही है । दान तो आपका और ख्याति उसकी ? यह तो आपका अपमान है। आप इसका आशय समझ लें । अपार लोकप्रियता के द्वारा राज्य छीनने की यह पूर्व
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*** कहे कलापूर्णसूरि - १)
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