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हम याद करते हैं ।
अंत में, ऐसी दिव्य वाणी की वृष्टि करनेवाले पूज्यश्री की दिवंगत आत्मा को हम नमन करते हैं । शंखेश्वर में पूज्यश्री को याद करते हुए जो पंक्तियां सहज रूप से निकली उन्हें प्रस्तुत करते हैं :
नमस्तुभ्यं कलापूर्ण ! मग्नाय परमात्मनि । त्वयात्र दुःषमाकाले भक्तिगंगावतारिता ।। ‘परमात्मा में लीन ओ पूज्य कलापूर्णसूरिजी ! आपने इस दुःषमा समय में भक्तिगंगा बहाई है । आपको हम नमन करते हैं ।'
पूज्य श्री की भक्ति गंगा में स्नान करके हम अपनी आत्मा को पावन बनाएं ।
पूज्यश्री के आशय - विरुद्ध इस ग्रन्थ में कुछ भी लिखा गया हो तो उसके लिए हम हृदय से मिच्छामि दुक्कडं देते हैं ।
नया अंजार, जैन उपाश्रय
वि. सं. २०५८, ज्ये. व. १
२७-५-२००२, सोमवार
पू.आ.भ. व पू. बा महाराज के संयम-जीवन की अनुमोदनार्थ हुए जिन-भक्ति-महोत्सव का दूसरा दिन ।
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पं. मुक्तिचन्द्रविजय गणि मुनिचन्द्रविजय
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