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प्रथम व्रत - अहिंसा :
एक मुसलमान वैद्य अभी आया था । उसने बताया कि संस्कृत में 'कु' अर्थात् पृथ्वी, ‘रान' अर्थात् घोषणा । पृथ्वी पर की घोषणा रुप इस कुरान में कहीं भी हिंसा की बात ही नहीं हैं ।
कई मुसलमान ऐसे होते हैं जो हिंसा नहीं करते, मांसाहार नहीं करते ।
जामनगर में एक वृद्ध शिक्षक आते । उसके कपड़ों पर खटमल दिखाई दिया । उसने उसे हटाया नहीं । वह बोला : इसे स्थान भ्रष्ट क्यों किया जाय ? 'ठाणाओ ठाणं संकामिया' का दोष नहीं लगेगा ?
उसने बताया, “एक मुस्लीम की पत्नी रुई कात रही थी । अतः उस मुसलमान ने अपनी छोटी पुत्री को गेहुं लेने के लिए भेजा । व्यापारी ने सड़े हुए जीवोंवाले गेहुं उसे दे दिये । घर आकर पोटली खोलने पर उसमें जीव प्रतीत हुए । मुसलमान ने पुत्री को कहा, शीघ्र जाकर गेहुं लौटा दे । यदि व्यापारी पैसे न लौटाये तो कुछ नहीं । उसी स्थान पर जीव तो पहुंच ही जाने चाहिये । वह लड़की गेहुं लौटा आई ।।
'मुसलमान भी इतनी अहिंसा का पालन करते हैं, तो हम तो हिन्दू हैं' यह बात उस वृद्ध शिक्षक ने हमें जामनगर में कही ।
अभिहया, वत्तिया आदि दस प्रकार से जीवों की विराधना टलनी चाहिए । 'अभिहया' अर्थात् अभिघात, टक्कर लगना । उपाध्याय श्री प्रीतिविजयजी को ट्रक की टक्कर लगी और स्वर्गवासी हो गये । हम छोटे-छोटे जीवों के लिए लोरी से भी खतरनाक हैं । न जाने हमारी टक्कर से कितने जीव मरते होंगे ?
हिंसा का मूल क्रोध है । क्रोधी व्यक्ति अहिंसक नहीं बन सकता ।
क्रोध को उपमितिकार ने वैश्वानर (अग्नि) कहा है । हिंसा को क्रोध की बहन कही हैं - ___ 'हिंसा भगिनी अतिबुरी रे, वैश्वानरनी जोय रे ।' उसे जितने के लिए क्षमा, मैत्री चाहिये ।
* प्रथम व्रत के लिये ईर्या-समिति, नीचे देखकर चलने कहे कलापूर्णसूरि - १ ****************************** ७१)