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बांकी (कच्छ) चातुर्मास प्रवेश,
✿ भगवान ने धर्म के दो प्रकार बताये हैं : श्रावक धर्म, एवं साधु धर्म । यदि उसे मुक्ति का कारण बनाना है, गुण- वृद्धि, दोष- क्षय करना हो तो उसका विधि-पूर्वक पालन होना चाहिये । कर्म-क्षय अर्थात् दोष-क्षय एवं गुण- प्राप्ति । दोनों प्रकार के धर्म कर्म-क्षय हेतु हैं ।
मिट्टी से घड़ा बनता है । उस प्रकार योग्य जीवो में उपादान रूप से रहे हुए गुण प्रकट होते है । प्रथम क्षायोपशमिक भाव के उसके बाद क्षायिक गुण प्राप्त होते है । सीधे ही क्षायिक गुण प्राप्त नहीं होते । कर्म के आवरण हटने पर गुण आते हैं और दोष नष्ट होते हैं ।
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२४-७-१९९९, शनिवार आषा. सु. ११
प्रगाढ मिथ्यात्वी जीव आत्मा का अस्तित्व भी स्वीकार करने के लिए तत्पर नहीं होते । नौपूर्वी भी मिथ्यात्वी हो सकते है ।
मैं आत्मा हूं
ऐसी अनुभूति उसे नहीं होती । मात्र आत्मा की जानकारी उसे मिल सकती है । आत्मतत्त्व की प्रतीति श्रद्धा अनुभूति
सब पर पर्दा डालने वाला मोहनीय है ।
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अंधकार व्याकुलता उत्पन्न करने वाला होता है । चोर या
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(कहे कलापूर्णसूरि १ ***********
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