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EPIGRAPHIA INDICA
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[VOL. XXX
1 ॐ नमश्चण्डिकायै 1 कैलासशैलमसमं प्रवरं गिरि ( री ) णां सनीलकंठः । कालञ्जरो जयति [ सं] स्पृहणीयवासः स्वग्र्गैौकसामपि विमुच्य दिवं मनोज्ञः 11211 आविर्व्व ( ब ) भूव विवु (बु) धैरपि माननीयः पद्माश (स) नस्त्रिभुवनामलसूलधारः । कल्पान्तरस्त्रि (स्थि)
न कस्य व ( ब ) न्धः सुचरित्रशी (सी) मा ॥३॥ र्वास्तव्यनामा सुचरित्रकेतुः । विसु (शु) द्धमुक्ता- 3
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2 तिमिता [ श्र* ]पि यत्प्रणीतशीलैश्चरन्ति कृतिनो विमलस्वभावाः ॥२॥ तस्यात्मजः कस्य (श्य) पनामधेयो मान्यो मुनीनामभवन्महर्षिः । यदादिमुव्र्वमपि संवदन्ति वंशस्ततोभून्महनीयः (य) कीर्ति
3 मणिवद्विरेजुर्यस्माद्वरालंकरणाः पुमान्शः (न्सः) ॥४॥
कलापुराणागमधर्म्मसा (शा) स्त्र
साहित्यविद्या (बु) धिपारद ( ग ) श्च । दयानिधानं समसत्यशी (सी) मा जाजूकण (ना) मा जनि तत्र धीमान (न्) ||५|| एकातपत्रं जगतीपतित्वं वितीर्य गण्डाय महीश्वराय । ग्रो (ग्रा) मो दुगौडा जनता[स]मृद्धो ये
युगमा
4 नार्जितं सा (शा) श ( स ) नमाविभाति ॥ ६ ॥ सिद्धाङ्गनागीतयशा महौजा महेश्वरस्तत्कुल श्राविराशी (सी) त ( त्) 1 यो मानवाचारविधिन्दधान[: * ] संपूर्ण पुण्यं निवा (ना) य ॥७॥ आराध्य प्री (पी) तादृ ( द्वि ) गतम्वि ( तं वि) पत्सु श्रीकीर्त्तिवर्माणमथ प्रपेदे । कालञ्जरद्वारवराधिकारङग्र (ग्रा) मञ्च रम्यम्पिपलाहि ॥ ( किञ्च ||८|| * ] 4 )
No. 18-BHUBANESWAR INSCRIPTION OF PRAMADI; SAKA 1064
(1 Plate)
D. C. SIRCAR, OOTACAMUND
In the course of my annual tour in search of inscriptions about the beginning of the year 1954, I visited the Kadārēśvara (Siva) temple at Bhubaneswar in the Puri District of Orissa on the 31st of January. There I found three inscriptions engraved on both sides of the doorway of the temple, one on the left side and two on the right. The inscription on the left side of the doorway of the Kēdārēśvara temple is a fairly big one. The writing is unfortunately almost completely rubbed out. Of the two records, incised one below the other, on the right side of the doorway, the
1 From an impression.
*Expressed by symbol.
At the end of the line there is a sign like a fork.
The inscription ends abruptly; the scribe apparently left out the last letters kancha which has to be conjecturally restored.