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JAINA INSCRIPTIONS FROM SATRUMJAYA.
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L. 4. जेठी पुच चि° उदयवंत बाई कोडिकुंअरिप्रमुखसारपरिवारसहितेन स्वयंकारितसप्राकारथी5. विमलाचलोपरि मलोहारमारचतुर्मुखविहारशंगारकधीयुगादिदेवप्रतिष्ठायां श्रीपादिनाथ
पादुके परमप्रमोदाय 6. कारित प्रतिष्ठिते च श्रीबहत्खरतरगछाधिराजश्रीजिनराजसूरिसूरिशिरस्तिलकैः ॥ प्रणमति
भुवनकीर्तिगणि: ॥ No. XVI." L. 1. संवत् १६७५ वैशाख सुदि १३ शुक्र ॥ ओसवालज्ञातीयलोढागोत्रीय सा रायमन भाया 2. रंगादे पुत्र सा जयवंत भाया जयवंतदे पुत्र विविधपुण्यकर्मकारकधीशत्रुजययात्रा 3. विधानसंप्राप्तसंघपतितिलक सं राजसीकेन भाया कसुभदेव तुरंगदे पु अषयराज भाया पह4. कारदे 5. पु अजयराज स्वभ्रातृ सं° अमीपाल भाया गूजरदे पु वीरधवल भा [जगतादे स्खलघुमा6. तसं वीरपाल भाया लीलादे प्रमुखपरिवारसहितेन श्रीआदिनाथपादुके कारित प्रतिष्ठिते
युगप्रधानश्रीजि[न] 7. सिंहसूरिपट्टोद्योतकश्रीजिनराजसूरिभिः श्रीशत्रुजयोहारप्रतिष्ठाय[1] श्रीबहल्खरतरगछाधि
राजे [] No. XVII. L. 1. स. १६७५ मिते सुरताणनरदीजहांगीरसवाईविजयिराज्ये साहिजादासुरताणषोस[ड] प्रवरे
श्रीराजी 2. नगरे सोबदसाहियानसुरताणपुरमे वैशाख सित १२ शुक्र श्रीमहम्मदावास्तव्यलघुशाखाप्रकट
प्राग्वाटजातीय से देवराज भाया 3. [5]डी पुत्र से गोपाल भाया राज पुत्र से राजा पुत्र सं साईा भाया नाकू पुत्र संजोग
भार्या जसमादे पुत्ररत्न श्रीशत्रुजयतीर्थयात्राविधानसंप्राप्तथीसंघपतितिलकनवीनजिनभ
वनबिंबप्रतिष्ठासाधर्मिकवात्सल्यादिधर्मक्षेत्री4. प्तस्ववित्त स सोमजी भार्या राजलदे कुक्षिरत्न राजसभाशगार सं[डपजीकेन पितृव्य संशिवा स्व भ्रातृ रत्नजी पुत्र मुंदर[दास सषर लघुभ्रातू षीमजी पुत्र रविजी स्वभायी जेठी पु° उदय
संत पितामह भ्रातृ सं नाथा पुत्र सं सूरजी प्रमुखसारपरिवारसहितेन 5. स्वयंसमुडारितसप्राकारश्रीविमलाचलोपरि मूलोद्वारसारचतुर्मुखविहारशृंगारहारश्रीआदिना
यबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीमहावीरदेवपट्टानुपट्टाविच्छिवपरंपरायातबीउद्योतनसूरि
श्रीवईमानसूरि वसतिमार्ग प्रकाशकश्रीजिनेश्वरसूरि श्रीजिनचंद्र6. [सू ] रि नवांगतिकारकश्रीस्तंभनकपार्श्वनाथप्रकटक श्रीमभयदेवसूरि श्रीजिनवल्लभसूरि देव
ताप्रदत्तयुगप्रधानपदधीजिनदत्तसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनपत्तिसूरि श्रीजिनेश्वरमूरि
श्रीजिनप्रबोधसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनकुशलसूरि श्रीजिनपद्मसूरि श्री7. जिनलब्धिसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनोदयसूरि श्रीजिनराजसूरि श्रीजिनभद्रसूरि श्रीजिन
चंद्रसूरि श्रीजिनसमुद्रसूरि श्रीजिनहंससूरि श्रीजिनमाणिक्यसूरि दिल्लीपतिपातसाहि
श्रीअकबरप्रतिबोधकतत्प्रदत्तयुगप्रधानबिरुदधारकसकलदेशाष्टाह्निका* Round a second pair of feet in the same temple ; Lide 1 on the south, 2 on the west, 3 and 4 on the south, and 5-7 on the east. ___- In the Gaumukha shrine, at the entrance of the great temple in the Kharataravasi Tuik,-Lists, p. 206, No. 310.
-J.B.