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June, 1916)
NOTES ON GRAMMAR OF THE OLD WESTERN RAJASTHANI
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कीह जाई | १३ | अर्थ धन घरि निरहई(?) बान्धव सगाँ नउ समूह मसाणभूमि एकलउ जाइ जीव नही (?) कोई अथि संग रहद की नही। १४ । मृत्यु मरणरूपीई ऊँटई जीवलोकवन अप्राप्तफलफूल काचउ [ खाजइ ] तेह नउ प्रसरण को वारणहार नथी देवलोकि मनुष्य [लोकि] असुरलोकि । १५ । गर्भथिउँ74 योनई नीसरिउँ [नीसरतउँ हूँसउँ] तथा नीसर्या पछी बालक वाधतउँ हैत छोकरउ तरुणउ मध्यम | १६ | करडवलिउ पलिउ गाढउ डोकरउ मरणविपाकि भावइ मरण देखा सवि का नई पातालि पइटउ पर्वतगुफा अटवी माहि |१७| थलि समुद्रि पर्वतशनि भाकाशि भमतउ जीव सुखीउ दुखीउ रणीउ78 दालिद्री मूर्ख विद्वांस करूप | १८ | रूपवन्त व्याधीउ' नीरोग सूचलउ० बलवन्त न परिहरइ वन नउ दावानल नी परि जलिउ असथवर 1 प्राणी जीव नउ समूह |१९| अर्थ लक्ष्मी न छूटी [न] बाह नई बलई न मन्त्रतन्त्र ओषधमणिविद्याइँ न धराइ। मरण नी एका घडी |२०| जन्मजरामरण तीणई हण्या जीव बहु रोगशोक तीणे संताप्या हीडरें। भवसमाद्रि सुक्ख ना सहस्र पामता |२१| जन्मजरामरण [ ना ] आयो जीव वाल्हाँ ना वियोग ते मुख ना आयो अशरण मर जाई संसार माहि भमई सदाइ । २२। अशरण मर इन्द्र बलदेव वासुदेव चक्रवर्तितउ एहवउँ जाणी नई करह जीव धम्म नउ उद्यम ऊतावलउ | २३ | बीहामणी भवाटवीई एकरउ जीव सदाइ असखाइउ कर्मई हणित भव नी श्रेणि हीडइ अनेकरूपे करी । २४ जिम आविड एकलउ कन्दोरा पाखई नागउ जीव जाइसह तिमजि एकलउ छाडी नई सर्व|२५| जाइ अनाथ जीव वृक्ष नउ फूल जिम कर्म नई वाई हणि धन धान्य आभरण पिता पुत्र कलत्र मेहली नई|२६||.
10. The Kulakara Rşabha teaches the Yugalins the Art of Cooking. [From the Adinathacaritra, contained in the MS. No. 700 in the Regia
____Biblioteca Nazionale Centrale of Florence.] जिवारह ऋषभ कुलग[र]पणा वर्तता ता जुगलिभा सगलाही कन्दाहार मूलाहार पचाहार पुष्पाहार फलाहार करता । तिणह प्रस्तावि सगलाही क्षत्रिय इक्षु सेलडी भोजन करता तिणइ मलि स्वाकुवंसी लोक कहीजह। हिवर युगाला सालि आदिदेई सणीधान सतरमउ एहवा १७ धान नी जाति आम काचा तुसे सहित खाता सर्व भस्म थाता सर्व जरतउ । पडसा काल नइ जोगइ काचा पाका फल फूल तुस धान सर्व तुसे सहित खाताँ जीमताँ युगलिभाँ०० नजरइ नही पचड़ नही सरीर नी अगनि मन्दी पडी माठीपडी अजीर्ण थाइवा लागा तिवारइ युगलिभा भगवन्त कन्हावी कहइ । आगइ श्री ऋषभ कहा जुगलिभा नर अहो युगलिभा 1 तुहे तुस धान सर्व फली पुरख सिरा लेई नहकरकमल सैं मसली कण जूदा करी आहार करउ | तिवारइ ते जुगलिआ तिमहीज करिवा लागा । इम करताही जिवारह जरइ नही तदा हाथ हुँ मसली तण्डुला काढी पुडौ माहे भीजवी नइ आहार करउ इमही करता जरह नही । तिवारहतण्डुला काढी पुडा दोना माहे भीजवी तिडका मेल्ही जीमउ । अथ तण्डला भीजवी तावडा मेल्ही हाथपुट मध्ये राखी नाभाहार करउ | भथ कण काढी भीजवी तावडर की तिडकउ लगावीजा करसम्पुट राखी कक्षा नउ ताप लगावी नह आहार करउ । तउही जरहनही । म केसलउ एक काल व्यतिक्रम्यउ अथापि भगनि पनी नथी अतिस्निग्ध काला आतिरूक्ष कालइ अगनि ऊपजह नही किंतु मध्यस्थ कालि ऊपजह [...] ते जगलिमा इणि विषह जेहवाइ रहइ छइ तेहवाइ प्रस्तावि वन माहे वाँसे बाँसि घासी नह अगनि ऊपनी तिवारह जुगलिए दीडी। देखी नइ भयभीत थया | भगवन्त नइ जई नइ कहा हे स्वामी वन माहे एहवउ एक पदार्थ नवउ ऊपनर छह ते धगधगाट करइ छदाता भगवन्ते ज्ञानह करी जाण्यउ भगनिपदार्थ ऊपनउ । जुगलिआ नह कहा छा तुम्हे तिहाँ जाभउ भासह पासह तृण खड काष्ठ परिहा करउ नही तउ सर्व बालि नइ भस्म करिस्यह अनई वले फल फूल पुहँख प्रमुख वन माहि थी ल्यावउ अगनि माहे पच पचहभाहार करउ । विवारह ते जुगलिआ वन माहि थी सिरा नी पोटली करी अगनि माहिमूका । ते सर्व बाली भस्म करइ | जगलिभा भगवन्त नह जाई कहर ते तउ अम्हाँही ती भूखी भराडी दीसह छड पाछउं०० कॉई100 आप नही । तदा भगवन्ते जाण्यउ ए साचा जुगलिभा समझई काई नही विण सीखव्या नही जाण । श्री भावीसर भगवन्त रहवाडी पधार्या हाथी ऊपरिवइसी मीली माटी आणी कडहलंउ घड्यउ नीवाह पचायउ । पछद चुल्हा नी मॉडि आधारण नउँ देवउँ धान नउँ ओरिवउँ ऊतारिवउँ मसोतउँ फेरव्यउँ नाँ लगह पचनारम्भ प्रवृत्ति सर्व भगवन्तर प्रगट करी जुगलिऑनइ दिखाली। तिवार पूठभाज ताँइ पाकारम्भ करिवा लागा ||.
THE END. 71 निहरहई. 73 सगा. 73 अप्राप्ति. 7 ° थिउं. 75 सब. ० भमतलं. सुखिउ. 78 रणीलं.
व्याधी. 80 तुबलउ. 81 बसथवर. 8 उ. छूटीई. धराई. हीडा. 86वाला.
पत्राहार. 8 सणीधान- 8 धान. 90 युगलिभा. का युगलि. जा. तंडल. "करह 95 मही. 00 न. 97 करइ. 8 I omit here the words ते वात गाथाई करी कहाबा which are unnODosary and intruding in the narrative. पाडत.
100 काई None of the preceding neuter forms is nasalized in the MS.