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________________ महाजनवंश मुक्तावली. काटके, तुम्हारे सामने धरता हूं, तुम प्रसन्न होकर, सिद्धराजकी लम्बी ऊमर होय, ऐसी करो, तुम उसपर सुनिजर रक्खो, जोगणियां उसका सत्व साहस देखणेको बोली, तूं बत्तीश लक्षणवन्त, शूरवीर है, तेरे मस्तक के बलिदानसें हम, सत्र सन्तुष्ट हो जावेगें, तब जगदेव अपणे खङ्गसे अपना मस्तक काटने उद्यमबंत हुआ, ऐसा सत्व देख जोगणिये जय २ शब्द कर हाथ पेकंड लिया और कहा हे सत्वशिरोमणि तूं जयवंतरह, अभी सिद्धराज जयसिंह - बहुत वर्ष जीवेगा, म्लेच्छ सेन्या इहां आवेगी, उनको जयकारणी शत्रुदल भंजणी अमोघ विद्या देकर विदा करा, जगदेव सिद्धराजकों सर्व वृत्तान्त कहा, अपना मस्तक काटने आदिका मुख्य वृत्तान्त नहीं कहा, सिद्धराज प्रशन्न हो जगदेवकी महान् प्रशंसा करी राजा युद्धकी सर्व सामग्री लइयार कराई, मलधारहेम सूरिः ( मलधार विरुद अभयदेव सूरिःकों, मिला था ) आत्मारामजी संबेगी पाल्हणपुर प्रश्नोत्तरमें लिखा है, उस नगरमें आये, जगदेवजी ७ पुत्रयुक्त उनके शमीप जाते आते थे, राजाकी शेन्या में जगदेवजीके पुत्र सूरजी शेन्यापति थे, एक महीने पीछे काबलके यवनोंका लस्कर आया, युद्ध होने लगा, सूरंजी हेमसूरिः से बीनती करी हे गुरु, युद्ध मैं जय हो ऐसी कृपा करो, गुरुनें कहा सावद्यकृत्य मैं सहमति देना हमारा आचार नहीं, -यदि तुम श्रावक हो जाओ तो प्रयत्न कर देता हूं, तब ७ पुत्रोंनें मंतव्य करा, गुरुनें विजयपताका यंत्र दिया, सूरजी भुजापर बांध सेन्या में गये, तत्काल यवन दल भाग गया, सिद्धराजने कहा साबास सूरराणा, वहसूराणान कहलाये, संखजीके सांखले कहलाये, ( शांखले राजपूत ओसवाल हुए, वे भी जातिनांमसे शांखले कहाते हैं) सांवलजी युद्ध में भग गये, उनके सर्व शंतानवाले सियाल बजने लगे, जो सावलजीके पुत्र बड़े मजबूत वदनमें हृष्ट पुष्ट थे, सिद्धराज जयसिंह उसको संड मुसंड कहते थे, एक दिन एक चारणनै सभामें इसी करी, कि वाप तो सियाल, ओर बेटा सांड कैसें, 1 तत्र सिद्धराजने कहा, " हे सांड हमारा सूरजका सांड है, उससे तूं लड़े तो, दुनियामें, सच्चा सांड कहलावै, । वह उसी वक्त खड़ा हुआ, जब राजा मस्त सांडकों, छोड़ा, उसी बख्त पकड़ सींग धक्का लगा कर दया चित्तमें
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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