SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाजनवंश मुक्तावली. शन्तान राज्यपती राजाधिराज पृथ्वीपती होंयगे और आजसे तुम्हारी कला और तेज प्रताप दिन २ बढ़ते रहेगा, तबसें राठौड, राज्य, धन, परिवारसे दिन २ बढ़तेही गये, ख्यात राठौडों मैं ऐसा लिखा है, ( दोहा ) गुरू खरतर प्रोहित सिवड़, रोहड़ियो वारट्ट । कुलको मंगत दे दड़ो, राठोंडां कुल भट्ट ॥ १ ॥ इस वास्ते झंबदे अपने कुलक्रमके उपकारी गुरूकी भक्ति मैं तत्पर हुआ, इसवक्त दिल्लीके बादशाह यवनने झंबदे पर हुक्म भेजा के, तुम बडे शूर वीर मच्छराल हो, सो घाटेका मालिक, भींया टांटिया भील, न मेरा हुक्म मानता है, और गुजरात देश मैं, चोरी कराता है राहगीरोंको लूटता है. बंध बांध ले जाता है इसको पकड़के लावोगे तो, तुम्हारी खातिरी दरबार में होगी, कुरब. वढाकर, पट्टा दिया जायगा, राजा उदास . हो, गुरूके शमीप गया, चरण कमल वन्दन कर कहने लगा हे गुरू आप गुरुओंके आशीर्वादसें, ये राज्य पाया, आपके बडे गुरू लोकोंने हमारे बडेरोंके, कईयेक बेर कष्ट आपदा दूर किया है अबकी लाज मर जाद जो गुरू रख दो तो बृद्ध पण सफल हो जाय, और आपके सेवकोंकी अखियात कीर्ति राज्य रह जाय, तब आचार्य बोले, हे राजेन्द्र जो तुम हिंसा धर्म त्यागके अहिंसा रूप अणुव्रत सम्यक्त्व युक्त जैनधर्म धारोतो सब हो जावे एक पुत्रकों राज्य देणा बाकी महाजन बनो तब गुरूके बचन सुण तहत्त किया तब गुरूनें कहा कल प्रयत्न कर दूंगा काला भैरूं मंडोवराकों आराधन : करा उसके वचन लेकर प्रभात समय विजय पताका जंत्रवणा कर राजाको दिया राजाने विचारा जो मैं भुनापर बांधूगा तो न मालुम युद्धमैं खुल पड़े इस लिए उसने अपने बड़े पुत्रकी जांच मैं चीरकर जंत्र डालकर टांके लगा दिये और गुरूका आशीर्वाद लेकर चढ़ा और उन दोनों भाइयोंको पकड़के . बादशाहके सुपुर्द किया बादशाहने वह सब भीलोंका इलाका झबुआ नगरके ताबे दिया सो अभी विद्यमान है राजाने अपने बड़े पुत्रकों राज्य तिलक १ जयचंद साथे यति हाड़ गाले हे माले, सेतरामरी सरबग ईधरे पाछीवाले रायपालरायनें दीनपति ग्रह्यो देखायो, कन ऊपर कर कृपा असंखदल अलग उडायो, सूरने त्रियामेली सरस किया इसावड २ कजां, खरतरे गच्छ हुआ इसाकदेनविर चोकमधजां ।
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy