________________
महाजनवंश मुक्तावली. १९१ . चार्यके जुल्मसें श्रीमाली पुष्करणे ब्राह्मनोंने वेद कृत्य कबूल करके यज्ञका मांस खाणा तो कबूल नहीं करा लेकिन मन्नावत श्रीमाली दशहरा वगैरह पर्वो पर लपसीका भेसा वणाकर कुसाघास डाभसे वेद मंत्र पढकर उसके गर्दन पर फेरके प्रशादी वांट खाते हैं ये महिमा अब भी वेदके यज्ञकी करते हैं पुष्करणे ब्याहमें आधी रातको कोरपाण वस्त्रपर सब बैठके गुड़की लपसी और दूध खाते पीते हैं वाद कलसा जांनके दिन जनेऊ ... कर स्नान करते हैं ये निशाणी स्वामी शंङ्कराचार्यजीने पीछी सिखलाई, जो कि अब भी करते हैं, अब तो इन्होंमें सुद्धा चारकी वृद्धि है, त्याग देना ही उत्तम है, क्योंके वुद्धे फलंतत्व विचारणंच ज्ञाति सुधार विद्या वृद्धिसें संम्बन्ध धराता है, विक्रमसं. सातसयमें श्रीमाली ब्राह्मणोंने श्रीमाल पुराण वणाया, उसमें कुछ भेद पाठान्तर ये बात लिखी है, हिन्दमें संप नहीं, करमसोत राजपूतोंका कटक नहीं कुत्तों की कतार नहीं, पोकरणोंके पुराण नहीं, श्रीमाल पुराणके अन्तर्गतही अपणी उत्पत्ति मानते हैं, कई पुष्करणे भीनमालमे कच्छमें गये, आधे मरुधर, जेसलमेर. पोकरण, फलोधी, मल्हार जोधपुर बीकानेर, छड़े बिछड़े, और २ जगह, इस वक्त सब पोसह करणे ४० हजार करीब होंगे, विशेष गोकुली गुशाइयोंके संखा वण रहे हैं, बाकी कुछ शाक्त हैं। __श्रीमाल वणिक गुजरातमें श्रीमाली दसावीसा बजते हैं गोत्रका नाम नहीं जांणते स्वामी शङ्कराचार्यजीके हमलेमें जैनधर्म छोड शैवमती विष्णुमती हो गये थे गुजरातमें हेमाचार्य ने फिर जैनधर्म इन्होंका कायम रक्खा सगपण जैन विष्णुवोंके होता है दिल्ली लखनऊ आगरा जयपुर झुझणूके जो श्रीमाल है इन्होंको श्रीजिनचन्द्र सूरिःने शैव धर्मसें प्रतिबोध देकर जैन धर्मी करा वह सब खरतर गच्छमें हैं बड़े २ श्रीमन्त लक्षाधिपती श्रीमाल गोत्री धर्मज्ञ हैं इन्होंकी १३५ जाति राजपूतोंसें फंटी है,।
(श्रीमाल गोत्र १३५) १ कटारिया २ कहूंधिया ३ काठ ४ कातेला ५ कांदइय ६ कुराडिक ७ काल ८ कुठारिये ९ कूकड़ा १० कौडिया ११ कौनगढ़ १२ कंबो