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महाजनवंश मुक्तावली
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धारगच्छी, प्रतिबोध कहै, कई एक अल्प संख्या वडगच्छ चित्रावाल गच्छ प्रतिबोधक राजपूत होंगे, वाकी मलधार श्रावकोंको, हीरविजयसूरिः आदिकोंने, बहुतों को तपा गच्छ माननेवाले करे, और वस्तपाल तेजपाल के द्रव्यकी सहायतासें, ज्यादह हो गये हैं, गुजरातके पूर्ण तल्ल गच्छके भी, इस वक्त तपागच्छ मानते हैं, प्राय जैन पोर बाल हरि भद्राचार्य प्रति वोधक हैं, श्री श्रीमाल श्रीमाल सर्व जात वैष्णव हुए बाद खरतर गच्छी श्रीजिन चन्द्र सूरिः के प्रति वोधक हैं, जहां जिस नगरमें जिस गांममें निज गच्छके गुरू नहीं हो उहां २ तीन पढ़िी वीतसें जो वेषधर सम्प्रदाय होय वो गुरू ठहर जाते हैं. ओस वंस तो सुरतरु है जो उसकी छांहमें बैठते हैं उसको छांया फल पुष्प सुगन्ध देते ही हैं, सुरतरूका बीज वोणे वालोंके शन्तानोंके तो, जरूरही उपकारके आभारी होनेका फरज है, इस समय गच्छों में तो कमला तपा खरतरा इन तीनोंकी साखाओंही फैलकर जती २ फैल गये. हैं क्यों कि १३ तपोंमेंसें सम्प्रदाय निकलीं पांचमकी संवत्सरी माननेवाले. जो जो सम्प्रदाय हैं वह सब तपागच्छ में से ही निकले हैं लोंकाजी भी तपा गच्छी श्रावक था इत्यादि सम्पूर्ण, जैसे किसी कविनें कहा सर्वे पदा हस्तिपदे प्रविष्टा ८४ गच्छ महावीरके सब जाके चार रहै तपा, खरतर, वड. गच्छी भाई हैं, पार्श्व नाथके कुंअला ये भी ८४ में ही हैं क्यों कि उद्योतन सूरिःके वासक्षेपमें आगये, जैनके सब सम्प्रदाय बड गच्छ, खरतरगच्छ कुंअलाको वर्जके इस तपागच्छसें अलग नहीं, गुजरात में तपागछ में से ही अलग होते गये, सामाचारी अलग २ होते गयी कमलामेंसे कोई शाखा निकली नहीं खरतर में ११ साखा अलग फंटी, लेकिन सबकी सामाचारी एक है जिसमें ७ शाखा मौजूद हैं, दो तो आचार्य गच्छ खरतर पाली १ दुसरे बीकानेर २ रंग विजय खरतर गच्छ लखनेऊ ३ भाव हर्ष खरतर गच्छ वालोतरा ४ मंडोवरा खरतर गच्छ भट्टारक जैपुर ५ बृहत् खरतर गच्छ भट्टारक वीकानेर ६ पीपलिया खरतर गुजरात में फिरते सुणा है
लोका गच्छके जती तो ६ के हैं लेकिन पूज्याचार्य तो ४ ही विद्यमान है गुजराती लूंपक गच्छी १ कंवरजी पक्षके गुजराती २ धनराजजीके