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महाजनवंश मुक्तावली १०१ सहदेव और करमण ७५ सहदेवके जसवीर ७६ मोहले ७७ के माणक भाई गोद माणकसी इन्होकी शन्तान बहुत फैली ७८ देल्हो ७९ केल्हणसी ८० त्रिभुवनजी ८१ सादुलसीजी ८२ लोणाजी लाखणसी जैतसी ३ भाई २ भाईबीकेजी संग बीकानेरमें आए जैतसीजीका परिवार फलोधीमें अन्दाजन ८० अस्सीघर वसते होंगे अवशेष सब मारवाड़में लोणाजीके (३ श्रीमन्तजी ८४ अमरानी सूरमलजी भाई ८५ अमरेकासीमाजी ८६ जीवणदासजी जीवण देसर वीकानेरके इलाके गांम वसाया ८७ ठाकुरसीजी ८८ राजसीजी ८९ आसकरणजी ९० रामचन्दजी ९१ उदयभांणजी ९२ दौलत रामजी ९२ माणक चन्दजी ९३ घमंडसीजी ९४ मल चन्दनी अबीरचन्दजी गच्छ कुंअला देवी सच्चाय सेवग बलि अढ़
(मिन्नी खजानची भुगड़ी साख १५) मोहनसिंहजी जातका चौहाणराजपूत उसनें दिल्लीमें मणिधारी श्री जिन चन्द्रसूरिःसे प्रति बोध लेकर महाजन हुआ सं १२१६ में मोहनजीरामान्नी खजानेका काम राव वीकाजीका करा खजानची बजने लगे, भुगड़ी सूखे बेर सिन्धमें बेचते थे इसवास्ते भुगड़ी नख हुआ वाकी नख इनमेंसे फटे हैं लेकिन् । नाम नहीं मिला, इसलिए मिलणेसें लिखेंगें, मूलगच्छ खरतर
(मुहणोतगोत्र पींचागोत्र ) ___ किशनगढ़ मारवाड़के रावराना राठोड़ रायपालजीके १२ पुत्र थे, सो मोहनसिंहजी और पांची सिंहजी भाइयोंकी अणवणतसे जेसलमेर गये, उहां रावलजीने बहुत खातर मुजमानी करी, उहां माणिक्यसूरिः महारानके पाटधारी, श्री जिन चन्द्रसूरिःका, त्याग वैराज्ञ उत्कृष्ट ज्ञान, तपकी तारीफ सुणके, हमेश व्याख्यान सुणने, आने लगे, अन्तकों मित्थ्यात्व त्याग गुरूके पास सम्यक्त्व उच्चर कर व्रतधारी श्रावक हुए रावलजीने बहुतही महिमा करी, जेसलमेरमें वसे मुणेजीके मुहणोत, पांची सिंघजीके पींचा गोत्र, प्रगट १५९५ में हुआ उहां सम्बत् सोलेहसेके करीबमें, तपा गच्छके विद्यासागर जतीने मुहणोत गोत्री खरतरोंकों, अपने गच्छमें कर लिया पींचे खरतरमें ही रहै, बाद उहांसे मुहणोत किसनगढ जोधपुर वगैरहमें राज्यके मुसद्दी हो गये,