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________________ १२ . प्रस्तावना. [प्रष्ण ] देवलोकमैं प्राप्त भये सम्यक्त्वीका चौथा गुणस्थानक है, और सम्यक्त्व युक्त व्रतधारीका पंचम गुण स्थानक होता है, प्रमाद मैं वर्तमान साधुका छठा गुणस्थानक, अप्रमादीका शप्तम गुणस्थानक होता है, इसलिये श्रावक और साधु चतुर्थ गुणस्थान प्राप्त देवताका वंदन पूजनस्मरण कैसे कर सकता है, [उत्तर] हे महोदय जैसैं वर्तमान जिन वंदन पूजनयोज्ञ होते हैं, तद्वत् भावी जिन भी वंदन पूजन योज्ञ होते हैं, जब प्रथम तीर्थकर, ऋषभदेवजी, इस अवसर्पिणी कालमैं, इस भरत क्षेत्रमैं हुये उस समय उनाने भरतचक्रीके पूछनेसैं आप तुल्य आगे २३ तीर्थकरोंका होना फरमाया, केवल आयु, देहमान, वर्णा- . दिकका भेद कथन करा, तद नंतर भरतचक्री केलाश [ अष्टापद] पहाड ऊपर सिंह निषद्या प्राशाद बनाकर चोवीस तीर्थ करोंकी प्रतिमा विराजमान करी, यह कथन आवश्यक सूत्रकी नियुक्तीमै श्रुत केवली भगवान भद्रबाहूस्वामी कृतमैं है, इस प्रकार भगवान् ऋषभ तथा ऋषभ पुत्र ९९ मुक्ति केलाश ऊपर गमना नंतर निर्वाण स्थानपर स्तूप कराया, यह कथन जंबूद्वीप पन्नत्ती सूत्र मैं है, इस प्रकार ऋषभ देवजीके चतुर्विध संघ प्रतिक्रमण षडावश्यक मैं दुसरा आवश्यक चउवीस त्थव [ चतुर्विंशति संस्तव ] करते थे वह लोगस्सके पाठ मैं सर्व श्रावक प्राय जानते हैं, वह वंदन पार्श्वनाथ स्वामीतक करा, उस मैं आगामी भावी जिन जो द्रव्य निक्षेप मैं थे, उनोका वंदन करणा प्रगटपने सिद्ध है, इस कथनानुसार, सीमंधर स्वामी तीर्थ करनें, जिन दत्तसूरिकों, एक भवावतारी, मोक्ष गमन, फरमाया है, इस लिये वंदन पूजन स्मरणके योज्ञ निश्चय दादासहाब है, १ दुसरा प्रमाण ऐसा है, नंदी सूत्र मै, २२ मी गाथा मैं जिनके लिखे हुये सूत्र अर्द्ध भरत मैं प्रचलित है, तंवंदेखंधलायरिए उन खंधिला चार्यकों वंदन कर्त्ताहूं इस प्रकार २७ पट्टधारी आचार्य देव ऋद्धिगणिः पर्यंतकों, उनके शिष्य सूत्र लेखक देवशेन आगमोंकी नंद लिखते वंदना करी है, प्रभव स्वामीसैं लेकर पंचम कालमैं जितने जैनाचार्य शुद्धज्ञान क्रिया भगवंतकी आज्ञाके आराधक हुये, होते हैं, होंयगें, वेसर्व देव लोक मैं देवता हुये हैं क्योंकि जंबूस्वामीके अनंतर मुक्तितो गये नहीं, नंदी सूत्र मैं २५ आचार्योंका वंदन लिखा ओर पढनेवाले करते हैं, सर्व जैन धर्मी नवकार मंत्रका स्मरण करते हैं, उस मैं तीनों कालके, आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधुओंकों, वंदन करते हैं, वे सर्व पंचम आरे मैं हुये, होयगें, होते हैं, वे सर्व देवगति धारककों वंदन हुआ वा नहीं, इस लिये ये शंका वृथा है, दादासाहबकी स्थापना गुरु पदकी है, नतु देव पदकी .. जो सूत्र वा न्यायसै युक्तिप्रमाण नहीं मंतव्य करै उनोंके लिये सरकारी दिवानी
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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