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________________ - महाजनवंश मुक्तावला गेला साहनें, मोहरोंसे तोबरे भरके चढ़ा दिये, तबसे लोक गेलड़ा २, कहन लगे, इन्होंके सातमें पीढी एक पुरुषकों, राठोडोनें किसी अपराधमें पकड़ कर, सब धन छीन लिया, तब वह दुखी हुआ, उसकों नागोरमें , ज्योतिष निमित्तसें, एक जतीनें, मुहुर्त बतलाया, इस वक्त तूं पूर्व देशमें चला जा, राजा साम्राट हो जायगा, ये निकला, सात कोस पर जाके, दरखत की छाह में सो गया, नींद आगई, सूर्य की धूप मुंह पर आई, तब एक सांप निकल के, छांह करके सूर्यके तरफ रहा, इतनेमें ये जागा, सांपको देख कर घब. राया, फिर पीछा आया, जतीजीने देख कर कहा, अरे पीछा क्यों आया, तब वह बोला ये स्वरूप वणा, जतीनीने कहा, अरे तूं छत्रपती होता था, वह शकुन सांपनें दिखाया था, अभी खेह भरा चलाना, · राजा तो नहीं होगा, तो भी राजा महाराजा बादशाहोंका · श्रीमन्व माननीय हो जायगा, ये चलता २, तीन महीनेसें . मुरसिदाबाद पहुंचा, क्रम २ व्यापारसें, बढ़ते २ जहाजोंमें माल भेजने लगा, आखिरको खाली नाव पीछी आती, तोफांनमें आई, तब नावड़ियोंने भरतीमें पत्थर डाला, वह सब पन्नारत्न था उस दिनसें, असंक्षा द्रव्यपती होगया, इन्होंके पुत्र खुशाल रायजीको दिल्लीके बादशाह औरंगजेबने, जगत्सेठकी पदवी वखसी, उस पीछे खरतर गच्छाचार्य श्री निन चन्द्र सूरिःकों सं.। १७२२ में सुरसिदाबाद विनतीसें बुलाये, महाराजनें उपदेश दिया, समेत शिखर पहाड़की यात्रा जाते रस्तेमें, प्रजाकों चोरोंका भय, रस्ता मिले नहीं इस लिए संघको दर्शन सुलभ होना चाहिये, तब सेठ साहबनें, झाड़ी. झंगीमें साफ रस्ता ६ कोस पर चौकी पहरो, विठलाये, ऊपरवीसों भगवानके जहां चरण नहीं थे उहां पधराये, और जातभाईजी आबै, उसकों श्रीमन्त वा देना, बड़ी भक्ति अनेक जिन मन्दिर, घर देरासर, कसौटीके पत्थरसें बनाकर नवरत्नोंके बिंब स्थापन किये, ये मन्दिर हमने विक्रम सं० १९२३ की सालमें, आंखोंसे देखा था, उनकी बदौलत, मुर्शिदाबाद, महमापुर, महाजन टोली अजीमगञ्ज, बालूचर, बगैरह गंजोंमें एक हजार लक्षाधिपति महाजनोंको बना कर बसाया । बीकानेरके गांवोंके, वासिन्दे, जो जो, गरीब महा--
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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