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________________ महाजनवंश मुक्तावली हाथ लगणेसें, भाटोंने ओसवालोंपर सिक्का जमाणा प्रारम्भ करा है, और अश्वपत लोक जैन धर्म धरानेवाले नती लोकोंसे, हरवातपर मुंह मचकोड़ते हैं, और भाटोंके लिए कडा कंठी मोती दुशाले देकर, इनायतीकी खूबी दिखाते हैं, जती महात्मा तो कुपात्र ठहरगये, मांस, मदिरा खाणेपीणेवाले भाट लोकोंका दान, सुपात्रों में, दरज हुआ, बाहरे पंचम आराकलियुग, तेरे विना, ये दशा कोन बनाता, अश्वपती महाजनोंकी वंशावली जती महात्मा बिना अन्यके पास होय सो, बिल्कुल गलत झूठी है, 'अश्वपत लोकोंको, इस बातका निर्धार करना चाहिए, आखिरकों, बादशाहनें, करम चन्दकों, हमेशा अपणेपास रखणा शुरू करा, तब किसी कारणसें, राजा रायसिंहनी; गुस्से होगये, सूरसिंहजी जब गद्दी नशीन हो, दिल्ली पधारे, तब करमचन्दके पुत्र पोतादिक परिवार बालोंको, विश्वास दे बीकानेर लाये इन्होंके पास, सातसय योद्धा राजपूत थे, एका एक सूरसिंहजीनें इन्होंको मारणे को, सेन्या भेजी, तब उन्होंके पुत्र भागचन्द लक्ष्मीचन्दनें अपणे हाथसे, सब परिवारकों, कतलकर, सातसय राजपूतों संग, केशरिया वागे पहन, युद्ध करके काम आये, इन्होंका चाकर रगतिया झूझार हुआ सो, भोजक लोकरगतिया वीरकर के पूजते हैं, एक बहु गर्भवंती, किसनगढ़, अपणे पीहर चली गई थी उसमें जो पुत्र हुआ, उनकी शन्तान, किशनगढ़ उदयपुर वगैरहोमें वसते हैं, वाकीबछावत मारवाड़ वगैरह बीकानेरके इलाकोंमें, वसते हैं, पीछे सूरसिंहनीने उन्होंकी जड़ निकालनेसें, माणक चौकका नाम, रांघडी रक्खा, कई दिनोंवाद कोई बादशाही काम पड़ा, तब राजा इन्होंका स्याम धर्मीपणा बिचारके, बहुत पछताये, आखिरकों, एक पुत्र खेमराजकों, बुलाकर, खींयासर गाम उसके नामसे वसाया, अठारह हजार वीघा जमीन देकर, बड़े कारखानेमें, वच्छावतोंका हाजर रहणा हमें सके लिये कायम रक्खा, ये जमीन रिणी गांमके तालुकेमें है, वोथरोंकी मूलशाखा ९ प्रतिशाखे अनेक हैं, मूल गुरू गच्छ खरतर, वोथरा १ फोफलिया २ वछावत ३ दसाणी ४ डूंगराणी ५ मुकीम ६ शाह ७ रत्ताणी ८ जैनावत, ९ ( दोहा ) बड़साखा ज्यों विस्तरो, बोहित्य राणा वंश, दिन २ प्रति चढ़तीकला, अनधन कीर्ति प्रशंस, ॥ १ ॥ '९-१०
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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