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________________ आर्यावर्त के दया के आचार का यह एक महान् उदाहरण है। भारतीय संस्कृति के उत्तराधिकारी हम कम से कम निर्दोष प्राणियों की हिंसातो न करें। अकाल आदि के समय अपने आश्रितों, स्वजनों एवं दीन-दुःखियों की यथा-शक्ति सहायता करना, उन्हें अन्न आदि देना भी एक महत्वपूर्ण देशाचार है। जैनाचार्य श्री परमदेवसूरिजी के भक्त जगडूशाह को जब आचार्य श्री ने ज्ञान-बल से बताया कि विक्रम संवत् 1313,1314 और 1315 तीन वर्ष तक निरन्तर दर्भिक्ष पड़ने वाला है, उस समय एक उत्तम सूखी जैन के रूप में आपको किसी भी प्रकार का भेद भाव रखे बिना पर्याप्त अन्न आदि प्रदान करके सबकी रक्षा करनी चाहिये और उसके लिये आपको अभी से ही कुछ व्यवस्था करने के विषय में सोचना चाहिये।" __ आचार्य देव के उपदेश को ध्यान में रखकर जगडूशाह ने अपार अन्न एकत्रित करना प्रारम्भ किया और अकाल का समय आने पर उन्होंने अपने अन्न के भण्डार सबके लिये खोल दिये। अनेक राजाओं को भी उन्होंने अत्यन्त अन्न देकर कहा कि यह अनाज वे अपनी प्रजा तक पहुँचायें, कहीं इसका दुरुपयोग न हो। ___ इसके अतिरिक्त उन्होंने 112 दानशालाऐं भी खोली ताकि जनता लाभान्वित हो सकें। कुल मिलाकर जगडूशाह ने आठ अरब, साढे छ: करोड़ मन अनाज नि:शुल्क दान के रूप में जनता को वितरित कराया। इस प्रकार के दानवीर जगडूशाह का जब निधन हुआ तब उसके सम्मान में दिल्ली के बादशाह ने अपने सिर से मुकुट उतारा था, सिन्ध-नरेश दो दिनों तक निराहार रहे और राजा अर्जुनदेव उस क्षति के कारण फूट-फूट कर रोये थे। ऐसे अन्य आचारों में अन्य संन्यासियों अथवा अन्य धर्मों के विशिष्ट प्रसंगों में भी कभीकभी उपस्थित होना पड़ सकता है। यदि ऐसा करने से जैन धर्म की प्रभावना होती हो तो वह भी करनी चाहिये। ___वस्तुपाल एवं पेथड़शाह ने जैनों की सुरक्षा एवं जैन धर्म की प्रभावना के लिये मुसलमानों के लिये मस्जिदों का निर्माण कराया था जिसके सम्बन्ध में इतिहास के पृष्ठों में वर्णन उपलब्ध है। इस प्रकार के कार्यों के लिये उस प्रकार की विशिष्ट योग्यता भी होनी आवश्यक है। समस्त मनुष्य इस प्रकार के अपवादों का सेवन नहीं कर सकते, परन्तु अपने स्तर के योग्य देशाचार का प्रत्येक व्यक्ति को पालन करना चाहिये। शिष्ट जनों द्वारा मान्य देशाचारों के पालन से आध्यात्मिक गुणों का विकास होता है जिससे उन आचारों का अनादर करना उचित नहीं हैं। व्यवहार में उचित एवं सुसंगत व्यवहार रखना भी देशाचार है।
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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