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॥श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः।। श्री जिनशासन सम्यग् ज्ञान का अमूल्य कोषागार है, सम्यग् ज्ञान की सुरभि से सुगन्धित एवं सुसंस्कारित है उक्त जिनागम का प्रत्येक पृष्ठ एवं प्रत्येक पंक्ति। इन पृष्ठों एवं पंक्तियों में महकती ज्ञान-सुरभि जीवात्मा के अनादिकालीन मिथ्यात्व की भयंकर दुर्गन्ध को समूल नष्ट करने के लिये अमोघ शक्ति से युक्त है। सम्यग् ज्ञान नरक एवं तिर्यंचों की दुर्गतियों के द्वारों पर ताले लगा कर देव गति एवं मानव भव की सद्गतियों के दरवाजे खोल देता है।
जीवन जीने की कला सिखाता है यह श्री जिन-शासन! मनुष्य को वास्तविक रूप में 'मनुष्य' बनाने वाला, शैतान को शैतान से मानव बनाने वाला और अन्त में 'भगवान' बनाने वाला है यह अनुपम श्री जिनशासन! वासना के बन्धन से चिर मुक्ति प्रदान कराने वाला और अन्त में शाश्वत सुख प्रदान कराने वाला है यह श्री जिन शासन।
अनन्त तीर्थंकर परमात्माओं का यह कैसा अमूल्य उपकार है। जिन शासन रूपी नौका को इस भव-सागर में तैरती हुई छोड़कर उन्होंने हम पर कैसा अनन्त उपकार किया है और कैसी अपरिसीम करूणा प्रवाहित की है!!! क्षण भर के लिये हम तनिक कल्पना करें कि यदि यह जिनशासन हमें प्राप्त नहीं हुआ होता तो? तो हम इस भवसागर में कहीं भटकते, टकराते और गोते खाते होते। हमारी क्या दशा होती और क्या दुर्दशा होती, उस पर क्या हमने कभी गम्भीरता पूर्वक सोचा है?
हमें उन आचार्य भगवान श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज के उस दिव्य शास्त्र वचन का स्मरण होता हैकत्थ अम्हारिसा पाणी दुसमा दोस दूसिया। हा! अणाहा कहं हुंता, जइन हुन जिणागमो।।
"श्री जिनेश्वर भगवान का यह अमूल्य जिनागम यदि हमें प्राप्त नहीं हुआ होता, यदि उसका अस्तित्व ही नहीं होता तो दुःषम काल के दोष से दूषित हम अनाथों का इस जगत् में क्या होता?
हमें कब परमात्मा के शासन से विहीन अपनी विजय अनाथ प्रतीत होती है? अनाथता प्रतीत हुई है, वांछित धन-सम्पत्ति प्राप्त नहीं होने पर। अशरणता प्रतीत हुई है, हृदय-वल्लभा पत्नी की मृत्यु होने पर। असहायता की अनुभूति हुई है, युवक पुत्र की अचानक दुर्घटना में मृत्युहुई तब।
व्याकुलता की अनुभूति हुई है, व्यवसाय में उथल-पुथल होने पर और अकल्पनीय मंदी के झटके के कमर तोड़े डालने पर।
आँधी आई है, जब जीवन में दुःखों का आकस्मिक एवं आकुल-व्याकुल कर डालने वाला 60606800 49090909