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प्राप्त किये। साक्षात् चिन्तामणि रत्न तुल्य ये मुनिवर सचमुच महात्मा हैं, दर्शनीय एवं वन्दनीय हैं।"
__ विवाह-बंधन में बँधे अभी चौबीस घंटे भी व्यतीत नहीं हुए उन वज्रबाहु ने महात्मा के दर्शनार्थ अपना रथ रोक लिया। उनके मुख-कमल पर विरक्ति की तनिक झलक देखकर उनके साले उदय सुन्दर ने अपने बहनोई की मजाक करते हुए कहा, "क्यों बहनोईजी! इन महात्मा के दर्शन करने में कोई साधु होने की भावना तो जाग्रत नहीं हो गई? देखना, ऐसा कुछ हो तो कहें। आप मेरे गुरु और मैं आपका शिष्या उत्तम कार्य में तो हम दोनों साथ ही रहेंगे न?"
वज्रबाहु ने कहा, "सालाजी! इनके दर्शन करके और इनका प्रसन्नतापूर्ण जीवन देखकर मेरा मन तो साधु हो जाने का ही हो गया है और उसमें भी यदि आप जैसे का साथ प्राप्त हो तो फिर अन्य विचार करें भी क्यों?"
वसन्तशैल टेकरी पर चढ़ते हुए कुमार वज्रबाहु की चाल में परिवर्तन आ गया। क्षण भर पूर्व सुखी गृहस्थी के स्वप्न देखने वाले उनके नेत्र, उनकी वाणी, उनकी मुखाकृति सब कुछ बदल गये।
अभी तक तो मनोरमा के साथ बँधा हुआ छोर भी छूटने नहीं पाया था कि वज्रबाहु की वैराग्यमय बातें और वैराग्यमय रंग-ढंग देखकर उनका साला उदयसुन्दर तनिक चौंका। वह बोला, "परन्तु बहनोईजी! सचमुच यदि आप दीक्षा अंगीकार करना ही चाहते हो तो आपने मेरी बहन का कुछ विचार किया है? आप चले जायेंगे तो फिर इसका कौन होगा?"
तब वज्रबाहु पल भर के लिये रुक गये और बोले, "उदय सुन्दर! तेरी बहन मनोरमा कुलीन है अथवा अकुलीन? यदि वह कुलीन है तो कुछ भी सोचने की आवश्यकता ही नहीं है। जो पति का मार्ग होता है वही कुलीन पत्नी का मार्ग होता है। यदि मैं दीक्षा अंगीकार कर लूँ तो वह भी दीक्षा लेकर आत्म-कल्याण करे। यदि वह अकुलीन है तो भी उसका पथ मंगलमय हो, परन्तु मुझे अब ये संसार के भोग-विलास नहीं चाहिये।"
बस, बाजी बदल गई। अब तक सुखमय संसार की कल्पना में झूमती मनोरमा का मन पति के उपर्युक्त वचन श्रवण करके बदल गया। उसने भी दृढ़ संकल्प कर लिया, "जिस पथ पर पति, उस पथ पर मेरा भी मंगल प्रयाण हो।"
और वज्रबाहु, मनोरमा और उदयसुन्दर ने उन महात्मा से दीक्षा अंगीकार कर ली। उनके साथ अन्य पच्चीस राजकुमारों ने भी दीक्षा अंगीकार की। इतना ही नहीं, वज्रबाहु के दीक्षित होने के समाचार सुन कर उनके विजय राजा ने भी संयम ग्रहण किया।
यह है उच्च कोटि के रक्त-युक्त व्यक्तियों और उच्च कुल में उत्पन्न आत्माओं की अद्भुत
कथा।
उच्च कुल एवं उत्तम रक्त वाली आत्मा अपने जीवन साथी एवं आश्रित व्यक्तियों को भी धर्म के उत्तम मार्ग पर अग्रसर करती है।
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