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प्राक्कथन जैन दार्शनिकों ने मानव जीवन के असीम गुण-गाये हैं। अनादिकाल से इस चतुर्विध संसार में परिभ्रमण करते हुए जीवात्मा को पापात्मा से पुण्यात्मा बनाने और अन्त में परमात्मा के सृजन में मानव-जीवन का प्रथम सोपान है।
परन्तु कौनसा मानव-जीवन शास्त्रकारों की प्रशंसा का पात्र है? किस प्रकार के मनुष्य का जीवन परम पद पाने योग्य है।
इसका उत्तर है - जिसका जीवन मार्गानुसारी के गुणों की सुगन्ध से सुरभित है, सद्गृहस्थ के रूप में उचित एवं उत्तम गुणों के गुलाब की सौरभ से सुशोभित है, जिनके सद्गुणों की सुरभि सम्पूर्ण विश्व में फैलती है ऐसे मनुष्य का जीवन प्रशंसा का पात्र है। ऐसे पवित्र पुरुष का जीवन परम पद की प्राप्ति का प्रथम सोपान बनता है।
आज सर्वाधिक विकराल एवं विकट प्रश्न है कि आज 'मानव' कहाँ है? हम मानवों को तो नित्य देखते हैं। एक-दो नहीं परन्तु सहस्रों मनुष्यों को हम नित्य निहारते हैं, परन्तु वास्तव में वे सभी मनुष्य 'मानव' नहीं होते। उनके स्वरूप सर्वथा भिन्न-भिन्न होते हैं।
आल्बेर कामू की 'घ प्लेग' शीर्षक एक सुप्रसिद्धकथा का स्मरण हो आया है। उस कथा में चार युवक वार्तालाप कर रहे हैं।एक युवक ने पूछा, “बोलो मित्रों! हम अपना भविष्य कैसा बनाना चाहते हैं? हमें भविष्य में क्या बनना है।"
एक युवक बोला, "मैं तो महान् वैज्ञानिक होना चाहता हूँ।" दूसरा बोला, "मेरी तो महान लेखक बनने की इच्छा है।"
तीसरे युवक ने कहा, "मेरी महत्वाकांक्षा तत्त्ववेत्ता बनने की है, इसके अतिरिक्त मेरी कोई इच्छा नहीं है।"
तीनों मित्रों का वार्तालाप चल रहा था, तब चौथा मित्र चुपचाप उनकी बातें सुन रहा था। ऐसा प्रतीत होता था कि मानो वह किसी अगाध चिन्तन-सागर में डूब गया हो। अपने उत्तर का मन ही मन चिन्तन कर रहा हो।
___ इन चारों मित्रों के साथ वहाँ महात्मा सुकरात भी बैठे हुए थे, परन्तु उन्होंने उनकी चर्चा में भाग नहीं लिया। फिर भी वे इन चारों की बातें रूचि पूर्वक सुन रहे थे। वे इस प्रतीक्षा में थे कि देख चौथा मित्र क्या बोलता है?
इतने में चौथा मित्र बोला, "मित्रो! मुझे तो दूसरा कुछ नहीं बनना, मैं तो 'मानव' बनना चाहता हूँ।"
यह वाक्य सुनते ही महात्मा सुकरात कुर्सी पर से उठ खड़े हुए और जोर से ताली बजा कर बोले, अरे! यह सर्वाधिककठिन एवं सर्वाधिक श्रेष्ठ बात है।"
यहाँ 'मानव' का अर्थ मानव-देह प्राप्त होने से नहीं है। मानव की देह में अनेक बार दानव भी निवास करते हैं। इन्सान के रूप में संसार में अनेक शैतान भी घूमते हैं।