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वर्णित की है।
___ अशिष्टता से परिपूर्ण पाश्चात्य लोगों की यह कैसी घोर अशिष्ट कथा है? यह कथा पढ़कर किस शिष्ट व्यक्ति का हृदय व्यथित नहीं हुआ होगा।
दुःख की बात तो यह है कि ऐसे अशिष्ट देशों एवं ऐसे अशिष्ट मनुष्यों की प्रशंसा करते करते आज अनेक भारतवासी थकते तक नहीं है। शिष्टाचारों का आदर-सत्कार करो
__यदि अशिष्ट विचारों एवं अशिष्ट आचारों को निकालना हो तो शिष्टाचारों की अत्यन्त प्रशंसा करनी चाहिये, शिष्ट जनों द्वारा आचरित संस्कृति का सर्वत्र आदर एवं सम्मान होना चाहिये। इस संस्कृति का प्रेम घर-घर में और घट-घट में व्याप्त करने के लिये हमें समस्त प्रयत्न करने ही होंगे, जिसके लिये हमें पहल करनी होगी क्योंकि Charity begins at home.
भारत के प्रधान मंत्री से लगाकर साधारण प्राथमिक शाला के चपरासी तक जब आज संस्कृति के मूल्यों का तिरस्कार कर रहे हैं, पाश्चात्य लोगों की प्रशंसा करके शिष्ट संस्कृति की अवहेलना कर रहे हैं और इलेक्ट्रोनिक क्षेत्र में भारत को अग्रसर करके इक्कीसवी शताब्दी में शीघ्र पहुँचाने की उतावल कर रहे हैं, फिर भले यन्त्रवाद के खप्पर में भारतवर्ष की प्रजा के सुख और शान्ति की बलि दे दी जायें, आर्थिक तौर पर उसका विनाश हो जाये, यन्त्रवाद के व्यापक प्रचार से जनता की रोजी-रोटी छिन जाये, ऐसे विकट समय में हमें अपने घर से अपनी संस्कृति का सम्मान करना प्रारम्भ करना होगा और जहाँ जहाँ उत्तम शिष्टाचार दृष्टिगोचर हो वहाँ वहाँ उनकी पर्याप्त प्रशंसा करके उनका स्वागत करना चाहिये, सम्मान करना चाहिये। ऐसा करने से वे शिष्टाचार जन जीवन में व्यापक होते जायेंगे।
इसके उपरान्त जो कोई अशिष्ट आचार जहाँ कहीं भी दृष्टिगोचर हों वहाँ उनका उचित प्रकार से प्रतिकार करना चाहिये, क्योंकि शिष्टाचार प्रशंसा का दूसरा छोर है अशिष्ट आचारों की अवहेलना। एक ओर तो शिष्टाचारों की प्रशंसा की जाये, परन्तु दूसरी ओर अशिष्ट आचारों का तिरस्कार, उनकी अवहेलना नहीं की जाये तो उसका कोई विशेष अर्थ ही नहीं रहता।
हिटलर एवं औरंगजेब जैसे दुष्ट शासकों ने भी अमुक शिष्टाचारों का उचित सम्मान किया है, जबकि वर्तमान बद्धिजीवी एवं पाश्चात्य प्रेमी कछ भारतीय व्यक्ति उन्हीं शिष्टाचारों की अवहेलना करते हैं तब हृदय में अत्यन्त खेद होता है। नारियों को नौकरी छुड़वाने वाला हिटलर
हिटलर ने शासन सम्हालते ही आदेश निकाला था कि समस्त नारियों को नौकरी करना बंद करके गृह-कार्य में, पति की सेवा में और बालकों के पालन-पोषण में लग जाना चाहिये, क्योंकि वह मानता था कि नौकरी करने वाला नारी के लिये सतीत्व (शील) की सुरक्षा का प्रश्न अत्यन्त