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__फैशनेबल वस्त्रों से मन तो पुलकित होता होगा, परन्तु आत्मा तो उदास ही होती है। मन कदापि प्रसन्न नहीं होता क्योंकि वह तो चंचल है। प्रसन्न तो आत्मा को करना है। यदि आय के अनुसार ही व्यय किया जाये तो चित्त शान्त रहेगा और आत्मा प्रसन्न रहेगी।
मिथ्या प्रदर्शन करना, व्यसनों का दास होना, फैशन के चक्कर में पड़ना-ये सब दुःखी होने के मार्ग हैं। यदिसुखी होना हो तो जैसे हो वैसे ही दिखाई देने का प्रयास करो।
वैभव और विलास में आप अपना धन नष्ट मतकरो। उसे सुमार्ग में, मानव-जाति के उद्धार में लगने दो। क्राउन ने कहा है कि - "युद्ध से तो मनुष्य नष्ट होते हैं परन्तु भोग-विलास से तो मानवजाति नष्ट होती है, मानवता नष्ट होती है। युद्ध से तो कदाचित् मनुष्यों की देह नष्ट होती हैं परन्तु भोगातिरेक से तो मनुष्यों के तन और मन दोनों नष्ट होते हैं। इस कारण ते ते पाँव पसारिये, जेती लंबी सौर
मनुष्य को अपने धन का किस प्रकार उपयोग करना चाहिये इस विषय में 'उचित व्यय' नामक इस गुण का इतना विस्तृत विवेचन करने का कारण यह है कि यदि मनुष्य आय से अधिक व्यय करता रहे तो उसका समस्त धन समाप्त हो जायेगा और धन समाप्त होने पर जीवन-निर्वाह कैसे किया जाये-यह एक भारी प्रश्न है, समस्या है।
फिर उससे मन निरन्तर आर्तध्यान में डबता रहेगा। यदि मन में आर्तध्यान रहेगा तो वह व्यक्ति धर्म-ध्यान कैसे करेगा? और यदि धर्म ध्यान से च्युत हो जायें तो समस्त मानव-भव हार जायेंगे, दुर्गति का द्वार देखना पड़ेगा और सद्गति के द्वार बन्द हो जायेगे।
इसलिये आय के अनुसार व्यय करना चाहिये। ऐसा करने से उचित बचत भी होगी और धर्म-मार्ग में भी उचित एवं यथाशक्ति व्यय किया जा सकेगा। ऐसा होने पर जीवन प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत होगा और परलोक भी सुख-पूर्ण एवं धर्म-प्राप्त करने योग्य होगा तथा परम्परा से परमलोक (मोक्ष) की प्राप्ति भी सरल होगी।
इस कारण ते ते पाँव पसारिये, जेती लंबी सैर यह बड़े-बूढ़ो का हितोपदेश ध्यान में रखकर "उचित व्यय' नामक गुण को जीवन में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करें।
HORORSCIT
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