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___ तत्पश्चात् अलीहुसेन ने निर्णय सुना दिया कि भाइचंद चारनंगों का असल मूल्य दे दे। भाइचंद ने अली चाचा की आज्ञा सिरोधार्य की।
इधर चार नंगों के लिये अपने चौबीस वर्ष के युवक पुत्र की झूठी शपथ खाने वाले चुनीलाल का उक्त पुत्र उसी रात्रि में रोग-ग्रस्त हुआ, जिसका अभी एक माह पूर्व ही विवाह हुआ था।
रात्रि में उसके ज्वर की तीव्रता में वृद्धि होती गई और प्रात: होते होते उस युवक पुत्र के प्राण परवेरु उड़ गये। चुनीलाल ने चार नंग प्राप्त करने की लालच में अपना इकलौता युवा पुत्र खो दिया।
उसे पुत्रकी मृत्यु की आघात असह्य हो गई। उसे अपने पाप की फल प्रत्यक्ष प्राप्त हो गया। दूसरे ही दिन प्रात: चुनीलाल वे चार नंग लेकर भाइचंद के समीप पहुँचा और कहने लगा, "भाइचंद भाई! मैं आपका भयानक अपराधी हूँ। मुझे अपने पाप का दण्ड प्राप्त हो गया है। अब अधिक दण्ड भोगने की शक्ति मुझ में नहीं है। आप ये अपने चार नंग लीजिये और मुझ पर कृपा करें।"
कैसी करुण घटना!
अनीति से धन प्राप्त करने की पापी मनोवृत्ति का कैसा भयानक परिणाम! अदालत (न्यायालय) के तीन मुकदमे
इस परिस्थिति का कारण कौन है? एक भयानक भ्रम, "जितना अधिक धन होगा, उतने हम अधिक सुखी होंगे।"
___बस, इस भयानक भ्रम के जाल में प्राय: समस्त समाज, प्राय: समस्त संसार के मनुष्य फंसे हुए हैं।
आज मनुष्य मात्र की पहचान धन के तराजू पर ही होती है, संसार में आज सब कुछ धन की तराजूपर ही तोला जाता है।
एक अदालत में तीन मुकदमे चल रहे थे और न्यायाधीश ने तुरन्त उनका निर्णय सुना दिया
था।
प्रथम मुकदमा - वादी ने कहा, "श्रीमान्! मेरी विवाहिता पत्नी को यह व्यक्ति भगा ले गया
न्यायाधीश ने कहा, "उस हानि के बदले तुम क्या चाहते हो?" वादी ने उत्तर दिया, "श्रीमान् ! पचास हजार रूपये।"
न्यायाधीश ने कहा, "अच्छा, हानि के बदले उक्त धन-राशिस्वीकार की जाती है। दूसरा मुकदमा
वादी - "श्रीमान्! इस व्यक्ति ने बाजार के मध्य मुझे जूता लगा कर मेरी प्रतिष्ठा भंग की
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