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एक दिन सुरेश दूकान पर बैठा हुआ था। उस समय उसके हृदय में विचार आया, "मुझे अपनी स्वयं की कुछ व्यक्तिगत सम्पत्ति भी एकत्रित करनी चाहिये, समय खराब है। यदि बड़े भाई के साथ कल कोई झगड़ा पड़ जाये तो मेरे पास क्या रहेगा?"
और उस दिन से ही उसने पेटी में से थोड़ी-थोड़ी धन राशि उठानी प्रारम्भ कर दी। व्यवसाय बड़ा होने के कारण रमेश को इस बात का तनिक भी आभास नहीं हुआ। एकत्रित धनराशि को सुरेश ने उसी दूकान के अमुक भाग में खड्डा खोद कर छिपानी प्रारम्भ की। इस प्रकार उसने बीस हजार रूपये एकत्रित कर लिये।
एक बार किसी कारणवश सुरेश अपने गाँव गया। इधर बम्बई में अचानक साम्प्रदायिक दंगा हो गया। इनकी दुकान मुसलमानों के मुहल्ले में थी। अतः रमेश ने देखा कि यहाँ रहने में प्राणों को खतरा है। अत: उसने सामान सहित पूरी दूकान किसी को बेच दी और वह भी अपने गाँव चला गया।
___ इस ओर जब सुरेश को यह ज्ञात हुआ कि रमेश ने पूरी दूकान बेच दी है, तब उसे अत्यन्त आघात लगा, जिससे वह पागल हो गया। उसके मुँह से एक ही पुकार निकलती "हाय! मेरे बीस हजार, हाय, मेरे बीस हजार?" इस प्रकार ज्येष्ठ भ्राता के साथ किये गये विश्वासघात पूर्वक धनसंचय के पाप ने सुरेश का जीवन बर्बाद कर दिया।
विश्वासघात का धन जीवन का सुख-शान्ति को सरे आम आग लगा देता है, इस तथ्य कोस्पष्ट करने वाली तक अन्य सत्य घटना का भी मुझे स्मरण हो आया है। अनीति के पाप ने चुनीलाल के पुत्र के प्राण ले लिये
___ अनेक वर्षों पूर्व बम्बई के जवेरी बाजार में चुनीलाल एवं भाइचंदभाई नामक दो जौहरी थे। दोनों का व्यवसाय जोरों पर था।
एक दिन चुनीलाल ने भाइचंद से हीरे के चार नंग खरीदे। भाइचंद ने वे नंग एक डिबिया में डालकर उसे दे दिया। उसी डिबिया में पतले कागज के नीचे अन्य चार नंग डाले हुए थे, इस बात का भाइचंद को ध्यान नहीं रहा।
चुनीलाल ने घर जाकर वह डिबिया खोली और देखा तो स्वयं द्वारा खरीदे गये चार नंगों के नीचे अन्य चार नंग भी थे। वे नंग अत्यन्त मूल्यवान थे। यह देखकर चुनीलाल की नीति खराब हो गई। उसने वे चार नंग हजम कर डालने का निश्चय किया।
वास्तव में वे चार नंग एक मुसलमान जौहरी के थे। वह भाइचंद को ध्यान आया तो वह तुरन्त चुनीलाल के घर गया। भाइचंद समझता था कि चुनीलाल ईमानदार व्यापारी है, वह चार नंग तुरन्त लौटा देगा। परन्तु जब भाइचंद ने चुनीलाल से वे चार नंग मांग तो उसने अपने पास होने का स्पष्ट इनकार कर दिया।
चुनीलाल के मुँह से इनकार सुनकर भाइचंद तो स्तब्ध रह गया। वह समझ गया कि