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2. देश विरति धर आत्मा
__ इन आत्माओं का भी लक्ष्य तो मोक्ष ही होता है और जिसके लिये वे धर्म पुरुषार्थ के आराधक भी होते हैं, परन्तु वे पूर्णत: एवं सम्पूर्ण जीवन पर्यन्त जिनाज्ञाओं का पूर्णरूपेण पालन नहीं कर सकते।
ये संसारी हैं, साध नहीं है। इस कारण इन्हें अर्थ (धन) और काम (भोग) की आवश्यकता अवश्य होती है। फिर भी वे अर्थ और काम को पूर्णत: हेय मानकर भी उनकी प्राप्ति के लिये सम्यग पुरुषार्थ अवश्य करते हैं, परन्तु इसमें भी यथा संभव समस्त पापों के वेत्यागी होते हैं।
मोक्ष पुरुषार्थ को ही प्रधान लक्ष्य स्वरूप मानने वाले और उसे प्राप्त करने के लिये धर्म पुरुषार्थ भी यथाशक्ति आराधक संसारी होने से अर्थ एवं काम को पूर्णरूपेण हेय मानते हुए भी उनके पूर्णत: त्यागी नहीं, फिर भी अर्थ एवं काम को प्राप्त करने के लिये किये जाने वाले अनेक पापों के त्यागी इन आत्माओं को शास्त्रों की भाषा में 'देशविरतिधर श्रावक' कहते हैं। 3. सम्यग्दृष्टि आत्मा
इन आत्माओं का लक्ष्य भी मोक्ष ही होता है और इनका पक्ष भी धर्म का ही होता है और इस कारण ही धर्म-विरोधी अर्थ एवं काम को वे सर्वथा त्याज्य मानते हैं, फिर भी वे इनके त्यागी नहीं होते।
ये आत्मा भी देश विरतिधर आत्माओं की तरह संसारी ही हैं और इस कारण ही इन्हें भी संसार चलाने के लिये अर्थ और काम की आवश्यकता तोपड़ती ही है। फिर भी वे अर्थ तथा काम को उत्तम (उपादेय) अर्थात् प्राप्त करने योग्य तो कदापि नहीं मानते। तो भी वे देशविरति श्रावकों की तरह अमुक अंश में भी अर्थ एवं काम के पापों के त्यागी नहीं हो सकते।
अर्थ एवं काम के पापों को त्याज्य मानकर भी वे उनका परित्याग नहीं कर सकते। अपनी ऐसी आत्मदशा पर इन आत्माओं को अत्यन्त खेद होता है, सन्ताप होता है, मानसिक वेदना होती
कारागृह में कैद कैदी को कारागृह तनिक भी प्रिय नहीं लगता, फिर भी वह उस बन्धन से युक्त नहीं हो सकता। उसका मन तो सदा कारागार से मुक्त होने के रंग-बिरंगे स्वप्नों में ही प्रसन्न होता रहता है। ठीक इसी प्रकार की मनोदशा इन आत्माओं की होती है।
संसार के अर्थ एवं काम को अत्यन्त हेय मानने पर भी कर्मों के किन्हीं अकाट्य बन्धनों में वे ऐसे जकड़े हए होते हैं कि वे अर्थ एवं काम का परित्याग नहीं कर सकते। फिर भी इनका मन नित्य मोक्ष-प्राप्ति की रटन करता रहता है - "मैं कब मोक्ष प्राप्त करूंगा? और मोक्ष के अनन्य कारण रूप मुनि जीवन को कब मैं अपना सकूँगा?" इस प्रकार की मंगल मनोदशा में इनकी आत्मा झूमती रहती है। इस प्रकार की आत्माओं को शास्त्रीय भाषा में सम्यग्दृष्टि श्रावक कहते हैं।
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