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SOCTOKaamsacscandey
धार्मिक व्यक्तियों पर से विश्वास उठ जाये।
अत: नीति शास्त्र ने सम्पति के चार भाग करने की बात कही है। उनमें से एक भाग जमा रखना है उससे व्यापार में हानि होने पर भी जीवन-निर्वाह करने में कठिनाई नहीं आयेगी। चार भाग करने के कारण धन-राशि तो सुरक्षित ही रहेगी।
यदि आय के अनुसार व्यय किया जाये तो कोई प्रश्न ही नहीं रहेगा और उपर्युक्त अनेक सम्भावित हानियों से बचा जा सकेगा।
निमंत्रण-नियंत्रण और संस्करण...
'मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ है' अनंत पुण्यराघि जब होती है तब ही मानव जीवन मिलता है... यह बातें सुनने में कई बार आयी परंतु हमारे पास जिस प्रकार का जीवन है यह देखते यह जीवन दुर्लभ है ऐसा लगता नहीं कोई समाधान?
एक बात याद रखना कि जीने जैसा जीवन किसी को भी जन्म से नहीं मिलता ... ऐसा जीवन हमें बनाना पड़ता है।
उद्यान में देखने मिलता गुलाब के पौधे का इतिहास उसके मालिक को पूछने से पता लगता है। आज इतना मस्त दिखाई पड रहा पौधा उसके जन्म के पहले दिन से ऐसा नहीं होता। उस पर जात जात के संस्कार करने पड़ते है। फिर वह उतना मस्त बनता है बस इस पौधे की तरह अपने जीवन का है। जन्म से जीवन मस्त नहीं होता उसे मस्त बनाने उस पर सतत तरह तरह के संस्करण करना पड़ता है।
मन में जागृत होते है वासनाओं के विचार। उसे योग्य दिशा में यदि नहीं भेजते तो वही विचार आपको पशु से भी न्युन बना देगा। निमित्त बस मन कषायों से व्याप्त है। उस पर यदि नियंत्रण न रखा जाए तो वो ही कषायग्रस्त मन आदमी को शैतान बनाकर रहता है। सम्यक् को निमंत्रण देते रहो गलत पर नियंत्रण रखते रहो और अविकसित मनका संस्करण करते रहने से जीवन जीने जैसा बना सकते हो।
आज जो मानव जीवन प्राप्त हुआ है वह दुर्लभ तो है लेकिन अगले जन्म में मानव जन्म प्राप्त करना हो तो निमंत्रण-नियंत्रण और संस्करण की त्रिपुटी को जीवन में स्थान दो। खुद परमात्मा को भी इस जीवन की प्रशंसा करनी पड़ेगी।
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