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MARCUCI Adanas
. प्रथम गुण न्याय-नीति नवि छड़िये रे..
न्यायसम्पन्नविभवः
(न्याय-सम्पन्न वैभव) आराधक का अन्तिम ध्येय मोक्ष है। वह प्राप्त न हो तब तक संसार निश्चित है।
संसार में संयमी बन कर जी सकें तो सर्वोत्तम है। एक पैसा भी यदि हमारे पास नहीं हो तो समस्त जीवन व्यतीत किया जा सकता है, इस सत्य का साक्षात्कार है - जैन श्रमण का जीवन।
परन्तु जो आत्मा इस प्रकार का सर्वोत्तम संयम जीवन नहीं जी सकते, उन संसारी आत्माओं को संसार में जीवन यापन करने के लिये सम्पत्ति एक अनिवार्य साधन है।
तो इस साधन की प्राप्ति किस प्रकार की जाये? संसारी मनुष्यों के लिये वैभव आवश्यक है तो वह वैभव भी कैसा होना चाहिये? साधन स्वरूप सम्पत्ति साधन मिट कर यदि साध्य हो जाये | तो कितना अनर्थ हो जायेगा?
इन समस्त प्रश्नों का समाधान आपको प्राप्त होगा.... इस गुण के पठन मनन में...
मार्गानुसारी आत्मा का प्रथम गुण है - न्याय सम्पन्न-वैभव।