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अत्यन्त कष्टमय भवों में हमें फैंक देते हैं, ऐसे अहितकर कुसंग का हमें पूर्ण रूप से परित्याग ही कर देना चाहिये। अश्लील एवं कुत्सित साहित्य का कुसंग -
कुमित्रों एवं कुदृश्यों जितना ही खतरनाक संग है - अश्लील एवं कुत्सित साहित्य पठन का। आज विश्व मे जितने सत्साहित्य का सृजन होता है उससे कदाचित् दस गुने कुसाहित्य का सृजन होता होगा। अनेक शौकीनों को पढने की भारी आदत होती है। पठन का चाव अच्छा है, परन्तु इसमें विवेक दृष्टि की अत्यन्त आवश्यकता होती है। सुसाहित्य (सत्साहित्य) का पठन मानव को संस्कारी एवं सद्गुणी बनाता है और कुसाहित्य का पठन मानव को विकारी एवं अवगुणी बना देता है। यदि कोई अन्य कार्य नहीं हो तो मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि अवकाश के समय नींद ले लेना, परन्तु अश्लील कुसाहित्य का कदापि स्पर्श तक मत करना। यदि आपको अपना जीवन मंगलमय बनाने की तमन्ना हो तो, कुमित्रों, कुदृश्यों एवं कुसाहित्य-पठन इन तीनों के संग से सदा दूर ही रहें।
कुसंग के त्याग रूपी पथ्य के सेवन सहित सत्संग रूपी औषधि आत्म कल्याण के लिये राम-बाण उपचार है। वह भील पूर्णत: नास्तिक था, वह मुनियों को पाखण्डी मानता और धर्म को ढोंग कहता। एक दिन विहार करते हुए एक ज्ञानी मुनिराज उसके घर पर आ पहुंचे। सूर्यास्त हो जाने के कारण आगे नहीं जा सकने के कारण उन्होंने उस भील के घर के एक कमरे में रात्रि-विश्राम करने की अनुज्ञा मांगी।
मानवता की दष्टि से भील ने उन्हें रात्रि-विश्राम की अनुमति तो प्रदान कर दी, परन्त उसके मन में यह था कि ये साधु कितने असत्य-भाषी होते हैं वह मैं इन्हें आज बता दूँगा। मुनियों की दृष्टि की प्रतिक्रमण आदि क्रियाएं पूर्ण होने पर भील वहाँ आया और उसने कहा "महाराज''| आज यदि महान ज्ञानी हैं तो कहिये - मैं कल क्या खाऊँगा ?" भील के मन में यह था कि महराज जिस वस्तु का नाम बतायेंगे उसे मैं कल खाऊँगा ही नहीं, फिर महाराज असत्य-भाषी हो जायेंगे।
मुनिराज सचमुच विशिष्ट ज्ञानी थे। भील को धर्म की ओर उन्मुख करने का यह निमित्त होने से उन्होंने इस अवसर का लाभ उठा लिया। उन्होंने ज्ञान-बल से कहा, "तू कल मूंग का पानी ही पीने वाला है, अन्य कुछ नहीं।" "मूंग का पानी तो मैं कदापि नहीं पिऊँगा'' इस प्रकार मन में सोचता हुआ भील अपने घर के भीतर गया। रात्रि में उसे अचानक भारी ज्वर चढ़ गया। रातभर पत्नी आदि ने उसकी सेवा की और प्रात: ही वैद्य को बुलाया। भयंकर तीव्र ज्वर से भील की देह जल रही थी। वैद्यराज ने नाड़ी देखकर कहा ''इस खाने के लिये कुछ भी मत देना और यह औषधि की पुड़िया मूंग के पानी के साथ दे देना।''
"मूंग का पानी' नाम सुनते ही भील चौंका और उठ बैठा। वह हाथ जोड़कर वैद्यराज को कहने लगा “वैद्यराजआप कुछ भी करें, परन्तु मुझे मूंग का पानी तो आज मत देना। मैं किसी भी
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