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जागृत करने हैं यह हमारे बस की बात है। यदि हम अशुभ संस्कारों को जागृत होने देना नहीं चाहते हों तो शुभ संस्कार ही जागृत करने हैं जिसके लिये सत्संग रूपी शुभ निमित्त प्राप्त करने पड़ेंगे।
खेत में कृषि करने के पश्चात् यदि उसमें अनाज का बीज नहीं बोया जाये तो घास आदि तो वहाँ स्वत: ही उग जाता है। उसके लिये कोई पुरुषार्थ करने की आवश्यकता नहीं होती। इसी प्रकार से यदि आत्मा रूपी खेत में सत्संग के द्वारा शुभ संस्कारों का बीज नहीं बोया जाये तो अशुभ संस्कारों रूपी घास तो स्वत: ही उगने वाला है। अत: सत्संगति के द्वारा शुभ संस्कारों को जागृत करना ही चाहिये। शुभ संस्कारों के लिये पुरुषार्थ आवश्यक -
अधिक पुरुषार्थ की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु शुभ संस्कार जागृत करने के लिये प्रबल पुरुषार्थ करना पड़ता है। जल प्रवाह को यदि ढालू भाग में नीचे की ओर प्रवाहित करना हो तो तनिक भी पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता, परन्तु यदि जल ऊपर चढाना हो तो पंप आदि लगाना पड़ता है, विशेष प्रयत्न करना पड़ता है।
इसी प्रकार से निर्बल निमित प्राप्त होने पर जीव में सुसंस्कार शीघ्र प्रकट हो जाते हैं, जबकि उत्तम निमित्त, आलम्बन प्राप्त होने पर भी सुसंस्कारों को उद्दीप्त करने के लिये जीव को प्रबल पुरुषार्थ करना आवश्यक हो जाता है। फिर भी शुभ संस्कार जागृत करने के लिये सत्संग एक अमूल्य उपाय है। सत्संग के प्रभाव से वंकचूल का उद्धार -
वंकचूल जैसे भयानक डाकू का भी मुनियों की सत्संगति के प्रभाव से जीवन-परिवर्तन हो गया था। चातुर्मासार्थ आये हुए आचार्य देव को चोरपल्ली में सपरिवार रहने की इस शर्त पर वंकचूल ने अनुमति प्रदान की कि वे उसे चातुर्मास में धर्म का कुछी भी उपदेश नहीं देंगे और आचार्य भगवान ने उसकी यह शर्त स्वीकार कर ली।
आचार्य भगवान आदि मुनिवरों के प्रयत्न उत्तम जीवन-व्यवहार से प्रभावित वंकचूल जब चातुर्मास पूर्ण होने पर आचार्य महाराज को प्रयाण के समय भेजने गया, तब उन्होंने उसकी सीमा के पार खड़े रहकर उसे धर्म के दो शब्द श्रवण करने के लिये कहा। आचार्य श्री के प्रति सद्भावना वाले वंकचूल ने उनकी बात स्वीकार कर ली, तब उन्होंने उसे प्रतिज्ञा का महत्व समझाया और उसके योग्य निम्न चार नियम अंगीकार करने की बात कही1.जिस फल को तू नहीं पहचानता हो उस अनजाने फल को तूमत खाना। 2. किसी भी जीव को मारना पाप है, परन्तु उस पाप का तू पूर्णतया त्याग नहीं कर सके तो किसी भी प्राणी पर प्रहार करने से पूर्व तू सात-आठ कदम पीछे हट जाना। 3. पूर्णरूप से उच्च कोटि के सदाचार की पालना करना, फिर भी यदि तुझसे यह न हो सके तो राजा