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________________ " विष अमृत हो जाय " श्री रतनलाल सिंधी बँगाल होजयरी, पो. इस्लामपुर, जि. वेस्ट दिनाजपुर, वे. बँगाल, पीन - ७३३२०२ (१) मैंने दस वर्ष की उम्र में मेरी मातासे नवकारमंत्र पाया। जैसे जैसे मुझे नवकार मंत्र का अर्थज्ञान हुआ वैसे वैसे इसके प्रति श्रद्धा बढती गयी। मेरे लडके प्रकाशकुमार सिधी की श्री डुंगरगढ में अपने ही घर में एक विषैले सर्प ने काट खाया। उस समय मैं घर में अनुपस्थित था। किसीके द्वारा मुझे बाजार में समाचार मिला। सुनते ही मैं घर की ओर चल पड़ा। घर पहुँचकर देखा कि प्रकाशकुमार भीड़ में घिरा हुआ था। भीड़ को अलग करके मैं उसके पास जा पहुँचा। मेरे पहूँचते ही सभी अलग अलग सुझाव देने लग गये। पर मैंने उनकी बातों पर ध्यान न देते हुए पूर्व दिशा में खडे होकर नमस्कार महामंत्र का उच्चारण किया, एवं अपने मुख को साप के द्वारा काटे गये स्थान पर पहुँचाकर उसे चूसना प्रारम्भ किया। सभी घबरा गये। सभी के मना करने पर भी मैं नमस्कार महामंत्र के बल पर अटल होकर उसे चूसता रहा और निकाले गये खून को एक बर्तन में एकत्रित करता रहा। बाद में उसको नीमका पत्ता दिया, उसे खारा लगा। तब मैंने अपना मुँह धो लिया। फिर ज़हर का कोई प्रभाव नहि रहा। (२) आजसे करीब तीन वर्ष पूर्व मेरा लड़का प्रवीण जिसकी उम्र ११ वर्ष है, अचानक ही घरसे निकल पड़ा। उसके पास सिर्फ रु. ३० एवं पहने हुए कपडे थे। मनमें सोचा कि राजस्थान जाऊँगा, इसलिए वह तीनसुजिया नामक ट्रेन में बैठ गया। रास्ते में जब टिकिट के बारे में पूछा और उसके पास टिकट न होने के कारण उसे अगले स्टेशन पर उतर जानेको कहा तो फ्र वह घबरा गया। दैवयोगसे उसे पास ही बैठे एक फौजी ( महेन्द्रपाल सिंह) ने घर का पता पुछा पर District न बताने के कारण वह पत्र भी नहि लिख सका एवं फौजी ने सोचा लड़का कहीं दुष्ट के हाथों पड़ जायगा तो जीवन बेकार हो जायेगा। इन सब बातों को गहराई से सोचकर कहा 'मेरे घर चलोगे?' उसके यूँ कहने पर प्रवीण राजी हो गया । उस फौजी का घर नगलामदो एवं District एटा है। घर में अपनी औरतसे कहा कि यह लड़का मेरे दोस्त का लड़का है। यह अपने घर ही रहेगा। इस तरह दिन व्यतित होने लगे। दिपावली के दिन उसके घर में माँस पकाया गया यह देखकर प्रविण ने उसके घर खाना न खाने का संकल्प कर लिया- तब उस फौजी की बहन जो निराभिष थी प्रवीण को अपने घर ले गयी । वहाँ पर रहकर भी प्रवीण सुबह नवकार मंत्र का जाप करता था । यहाँ हमने घर पर भी नमस्कार महामंत्र का २४ घंटे का अखंड जाप, भक्तामर पाठ, द्रव्यों का संयम, कुछ द्रव्यों का १२ महिना पच्चक्खान, स्वाध्याय, सामयिक, १२ महिने तक्का ब्रह्मचर्य आदि विविध प्रकार के त्याग किये। साथ ही जिनशासन अनुरागी धरणेन्द्र पद्मावती का आह्वान ५ दिन अखण्ड रूपसे जाप करके किया और प्रार्थना की कि वह दुश्चरित्र से बचे, नमस्कारमंत्र का स्मरण करे और उसका दुशग्रह दूर हो। इसके फलस्वरूप उधर प्रवीण को एक दिन रात्री के समय स्वप्न में एक देवी का दृश्यावलोकन हुआ। उस देवी के पास कोई सवारी नहि थी एवं न ही उसके हाथ में शस्त्र थे। वह १३
SR No.032463
Book TitleJena Haiye Navkar Tene Karshe Shu Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagar
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2015
Total Pages260
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size33 MB
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