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संक्रमकरण ]
प्रकृतिक बारह संक्रमस्थान हैं।
विशेषार्थ – छठे नामकर्म में बारह संक्रमस्थान होते हैं, यथा – एक सौ तीन , एक सौ दो, एक सौ एक, छियानवै, पंचानवै, चौरानवै, तेरानवै, नवासी, अठासी, चौरासी, बियासी और इक्यासी प्रकृतिक। नामकर्म की सर्वप्रकृतियां एक सौ तीन होती हैं, यथा - गतिचतुष्क, जातिपंचक, शरीरपंचक, संघातपंचक, बंधनपंचदशक, संस्थानषट्क, संहननषट्क, अंगोपांगत्रिक, वर्णपंचक, गंधद्विक, रसपंचक, स्पर्शअष्टक, अगुरुलघु आनुपूर्वीचतुष्क, पराघात, उपघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, विहायोगतिद्विक, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, साधारण, प्रत्येक, पर्याप्त, अपर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, दुःस्वर, सुस्वर, आदेय, अनादेय, अयशः कीर्ति, यशः कीर्ति, निर्माण और तीर्थंकर। यह एक सौ तीन प्रकृतिक संक्रमस्थान है।
इनमें से तीर्थंकर को छोड़कर एक सौ दो प्रकृतिरूप स्थान होता है। अथवा यश:कीर्ति रहित एक सौ दो प्रकृतिक स्थान होता है। तीर्थंकर, यश:कीर्ति रहित एक सौ एक प्रकृतिक स्थान होता है।
एक सौ तीन में से आहारकसप्तक को कम करने पर छियानवै प्रकृतिक स्थान होता है। उसमें से तीर्थंकर रहित पंचानवै प्रकृतिक अथवा यशःकीर्ति रहित पंचानवै प्रकृतिक स्थान होता है तथा छियानवै प्रकृतिक स्थान में से यश:कीर्ति और तीर्थंकर नाम को कम करने पर चौरानवै प्रकृतिक स्थान होता है। तीर्थंकर नाम रहित पंचानवै प्रकृतिक स्थान में से देवगति और देवानुपूर्वी को कम करने पर अथवा नरकगति और नरकानुपूर्वी को कम करने पर तैरानवै प्रकृतिक स्थान होता है।
एक सौ तीन प्रकृतिक स्थान में से नरकगति, नरकानुपूर्वी, तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, पंचेन्द्रिय जाति को छोड़कर शेष चार जाति, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, आतप उद्योत, इन तेरह प्रकृतियों के क्षय हो जाने तथा यश:कीर्तिनाम को कम कर देने पर नवासी प्रकृतिक स्थान होता है। यही तीर्थंकर रहित अठासी प्रकृतिक स्थान होता है।
तेरानवै प्रकृतिक स्थान में से वैक्रियसप्तक और नरकगति, नरकानुपूर्वी के उद्वलन करने पर शेष रही चौरासी प्रकृति रूप स्थान होता है। उनमें से मनुष्यगति और मनुष्यानुपूर्वी के उद्वलन करने पर बियासी प्रकृतिक स्थान होता है। अथवा छियानवै प्रकृतिक स्थान में से पूर्वोक्त तेरह प्रकृतियों के क्षय हो जाने पर और यश:कीर्ति को कम कर देने पर बियासी प्रकृतिक स्थान होता है और इसी में तीर्थंकर प्रकृति रहित इक्यासी प्रकृतिक स्थान होता है।
___ इस प्रकार नामकर्म के ये बारह संक्रमस्थान होते हैं। अब नामकर्म के पतद्ग्रहस्थानों का प्रतिपादन करते हैं -